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यहाँ की अनेक कलाकृतियाँ उसमानपुर के डॉ० श्याम सुन्दर सिंह के संग्रह में हैं, जिनमें एक मृण्मुद्रा पर मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि में ' प ( 1 ) वानारा' लेख अंकित है। इस मृण्मुद्रा से भगवान् की कैवल्यभूमि को पहचान में सहायता प्राप्त होती है, क्योंकि यह एक महत्त्वपूर्ण पुरातात्विक साक्ष्य है।
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उसमानपुर के प्राचीन टीले को 'वीरभारी' कहते हैं । 'वीरभारी' का सीधा सम्बन्ध 'महावीर' से है । 'महावीर' और 'वीरभारी' में शब्द - साम्य भी है। 'वीरभारी' में महावीर और 'वीर' शब्द ज्यों का त्यों सुरक्षित है और 'महा' के लिए 'भारी' शब्द पूर्व के स्थान पर 'वीर' के बाद में प्रयुक्त हो गया है। अतः 'महावीर' और 'वीरभारी' में यह सम्बन्ध तथा वीरभारी से ‘पावानारा' लेखयुक्त मृण्मुद्रा का मिलना स्पष्ट रूप से संकेत करता है कि कुशीनगर का 'वीरभारी' ही भगवान् महावीर की निर्वाण भूमि 'पावा' है।
सुमंगलविलासिनी' की टीका में 'पावा' से कुशीनारा की दूरी ३ गव्यूत (पावानगरतो तीणि गावुतानि कुसिनारा नगरम् ) अर्थात् १२ मील बतायी गयी है । अतः कुशीनगर से पावा की दूरी १२ मील या लगभग १८ कि०मी० होनी चाहिए। उल्लेखनीय कुशीनगर से वीरभारी दक्षिण-पूर्व में लगभग १८ कि०मी० दूर है। महात्मा बुद्ध ने वैशाली से कुशीनगर आने के पूर्व पावा में भोजन ग्रहण किया था अर्थात् पावा कुशीनगर से दक्षिण-पूर्व में वैशाली के मार्ग में स्थित था। इस प्रकार सुमंगलविलासिनी की टीका में दी गयी दूरी और दिशा की दृष्टि से भी वीरभारी की पहचान पावा के रूप में सुनिश्चित होती है।
उल्लेखनीय है कि पूर्व में भी मृण्मुद्राओं पर अंकित लेख से उनके प्राप्ति स्थल की पहचान की जा चुकी है, जैसे- 'श्रेष्ठिग्रामाग्रहारस्य' से सठियाँव और फाजिलनगर की, 'महापरिनिर्वाण भिक्षु संघ' और 'श्रीमहापरिनिर्वाण महाविहारीयार्य भिक्षु संघस्य'" आदि से कुशीनगर की, 'श्री नालंदा महाविहारे चातुर्दिशार्यभिक्षु संघस्य'' से नालन्दा की, 'कौशाम्ब्यां घोषिताराम महाविहारे भिक्षु संघस्य" से कौशाम्बी की तथा 'ॐ देवपुत्र विहारे कपिलवस्तुस भिक्षु संघस्य एवं महाकपिलवस्तु भिखु संघस्य' १० आदि से कपिलवस्तु की। अतः 'पावानारा' लेखयुक्त मृण्मुद्रा से 'पावा' के रूप में 'वीरभारी' की पहचान में भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह एक महत्त्वपूर्ण अभिलेखीय साक्ष्य है। इस सन्दर्भ में यह भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि सठियाँव, कुशीनगर, नालन्दा, कौशाम्बी और कपिलवस्तु की मृण्मुद्रायें अधिकांशतः गुप्तकाल और कुषाणकाल की हैं लेकिन वीरभारी की मृण्मुद्रा जिस पर 'पावानारा' लेख है, इनसे बहुत पूर्व की - मौर्य काल की है।
इस प्रकार इन सभी दृष्टियों से यह तथ्य सम्पुष्ट होता है कि उत्तर प्रदेश में कुशीनगर जनपद का वीरभारी ही भगवान् महावीर की निर्वाण भूमि पावा है।
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