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अमरकोषकार अमरसिंह किस धर्म के अनुयायी थे यह एक पहेली बनी हुयी है। वैदिक सम्प्रदाय के विद्वान उन्हें वैदिक मानते हैं तो कुछ विद्वान् बौद्ध सम्प्रदाय का निश्चित करते हैं और कतिपय विचारक उनको जैन मानकर चलते हैं। इस सन्दर्भ में मेरी मान्यता है कि अमरसिंह को जैनधर्म का अनुयायी होना चाहिए। इस तथ्य के पोषण में हम निम्नलिखित प्रमाण प्रस्तुत कर सकते हैं।
उपलब्ध प्रतियों में मङ्गलाचरण के रूप में निम्न श्लोक मिलता है जो जैन वाङ्मय में बड़ा लोकप्रिय हुआ है और जिसमें अक्षय आदि जैसे पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग हुआ है
यस्य ज्ञानदयासिन्धोरगाधस्यानद्या गुणाः।
सेव्यतामक्षयो धीराः स श्रिये चामृताय च।। अमरकोष, १.१ २. शोलापर निवासी स्व० रावजी सखाराम दोशी ने अमरकोष से सम्बन्ध पुस्तक की भूमिका में उपर्युक्त मङ्गलाचरण के पूर्व निम्नलिखित दो और श्लोक उद्धृत किये हैं जो तीर्थङ्कर शान्तिनाथ के स्तुति के द्योतक हैं। ये श्लोक वर्तमान संस्करणों में उपलब्ध नहीं हो रहे हैं।
जिनस्य लोकत्रयवन्दितस्य प्रक्षालयेत्पादसरोजयुग्मम्। नखप्रभादित्यसरित्प्रवाहैः संसारपङ्कं मयि गाढलग्नम्।।
नमः श्रीशान्तिनाथाय कर्माराति विनाशिने।
पञ्चमश्चक्रिणां यस्तु कामस्तस्मै जिनेशिने।। ३. इन तीनों श्लोकों का भावानुवाद जैन कवि वादीभसिंह कृत गद्यचिन्तामणि में भी देखा जा सकता है।
४. प्रथम काण्ड के ८-११ श्लोक तक अमरसिंह ने कुछ ऐसे देवी-देवताओं का उल्लेख किया है जो जैन शासन में स्वीकृत हो चुके हैं।
इन प्रमाणों के अतिरिक्त ग्रन्थ के गहन अध्ययन करने पर और भी प्रमाण संकलित किये जा सकते हैं जिनसे यह सिद्ध हो जायेगा कि अमरसिंह वस्तुतः जैनधर्मानुयायी थे।
जहाँ तक अमरकोष में शिव तत्त्व खोजने का प्रश्न है वह भी सकारात्मक है। कोष में साधारण तौर पर उन सभी शब्दों का संकलन कर दिया जाता है जो कोषकार के समय तक स्वीकृत हो जाते हैं चाहे वे किसी भी सम्प्रदाय के हों। इस दृष्टि से अमरकोष का अध्ययन करने के बाद यह पता चलता है कि कोषकार ने शिव वाचक सभी नामों को संग्रहीत किया है जो उनके समय तक प्रचलित हो चुके थे।
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