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स्व० श्री शान्ति भाईवनमाली शेठ : एक परिचय
आपका जन्म सौराष्ट्र के जेतपुर में तारीख २१-५-१९११ को शेठ बनमाली दास की पत्नी श्रीमती मणिबहन की कोख से हुआ। प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा गुजराती माध्यम से जेतपुर में ही हुई । तदनन्तर १९२७ से १९३१ तक श्री अ० भा०श्वे०स्था० जैन कॉन्फ्रन्स द्वारा स्थापित जैन ट्रेनिंग कालेज बीकानेर, जयपुर और ब्यावर में संस्कृत - प्राकृत का अध्ययन किया तथा कालेज की ओर से 'जैन विशारद' की उपाधि प्राप्त की और साथ ही जैन- न्याय की परीक्षा 'न्यायतीर्थ' उत्तीर्ण की। जैन शास्त्रों का विशेष अध्ययन करने के लिए आप अहमदाबाद में पं० बेचरदास जी के पास रहे और वहाँ प्रज्ञाचक्षु पं० सुखलाल जी तथा आचार्य मुनिश्री जिनविजय जी के विशेष सम्पर्क में आये । पू० गांधीजी, आ० काकासाहेब, आ० कृपलानी जी आदि राष्ट्रनेताओं के सम्पर्क में आने का भी आपको अवसर मिला। उसके बाद १९३१ से १९३४ तक विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर के विश्वभारती शान्ति निकेतन में रहकर आचार्य मुनि जिनविजयजी एवं महामहोपाध्याय श्री विधुशेखर भट्टाचार्य से जैन धर्म और बौद्ध धर्म का तुलनात्मक अध्ययन किया। परिणामस्वरूप 'धम्मसुत्तं' के नाम से जैन, बौद्ध सूत्रों का संकलन किया जो बाद में पं० बेचरंदास जी द्वारा सम्पादित होकर 'महावीर वाणी' के नाम से प्रकाशित हुआ ।
१९३५ से १९४४ तक विविध धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं में सेवारत . रहकर आपने विभिन्न ग्रन्थों का संकलन और सम्पादन किया। आपके साक्षात्कार, जवाहर - ज्योति, धर्म और धर्मनायक, ब्रह्मचारिणी, जवाहर व्याख्यान संग्रह, जैन प्रकाश की उत्थान- सम्पूर्ति, अहिंसा पथ आदि पत्रिका और ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं।
१९४५ से १९५० तक श्री पार्श्वनाथ विद्याश्रम, बनारस में संचालक के रूप में सेवा दी और पं० सुखलालजी के सम्पर्क से मन में रही हुई 'समन्वय - भावना' विशेष दृढ़ हुई। वहीं रहकर 'जैन कल्चरल रिसर्च सोसायटी' की स्थापना और संचालन में योगदान दिया और जैन संस्कृति, धर्म और दर्शन विषयक कई पुस्तिकाओं का सम्पादन किया ।
१९५५ से १९६५ तक श्री स्था० जैन कॉन्फ्रेन्स के मन्त्री रहे और दिल्ली जैन - प्रकाश (हिन्दी, गुजराती) का सम्पादन किया। इसी बीच जैन गुरुकुल, ब्यावर में रहकर समाजसेवा की।
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