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कर दिया था। इस सन्दर्भ में निर्मित अभंग श्लेष का बिम्ब-सौन्दर्य अतिशय चित्ताह्लादक और मनोमोहक है।
बिम्ब-विधान और सौन्दर्य-निरूपण के सन्दर्भ में अतिशय प्रतिभाप्रौढ एवं वाग्विदग्ध महाकवि आचार्य जिनसेन की काव्यभाषा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। उनकी काव्यभाषा सहज ही बिम्ब-विधायक और सौन्दर्योद्भावक है। उनकी काव्य साधना मूलत: भाषा की साधना का ही उदात्ततम रूप है। कोई भी कृति अपनी भाषा की उदात्तता के आधार पर ही चिरायुषी होती है। इस दृष्टि से महाकवि जिनसेन का आदिपुराण एक कालजयी काव्यकृति है। आदिपुराण की काव्यभाषा यदि अनन्त सागर के विस्तार की तरह है, तो उससे उद्भूत बिम्ब और सौन्दर्य के रम्य चित्र ललित लहरों की भाँति उल्लासकारी हैं। वाक् और अर्थ की समान प्रतिपत्ति की दृष्टि से आचार्य जिनसेन की भाषा की अपनी विलक्षणता है।
__कवि की भाषागत अभिव्यक्ति का लालित्य ही उसकी कविता का सौन्दर्य होता है और उस लालित्य का तात्त्विक विवेचन-विश्लेषण ही सौन्दर्यशास्त्र का विषय है, जिसमें काव्य के रचना-पक्ष के साथ ही उसके प्रभाव-पक्ष का भी विवेचन-विश्लेषण निहित होता है। कहना न होगा कि कविर्मनीषी आचार्य जिनसेन का आदिपुराण रचना-पक्ष और प्रभाव-पक्ष, अर्थात् कथ्य और शिल्प दोनों दृष्टियों से सौन्दर्यशास्त्रियों के लिए अध्येतव्य है।
कुल मिलाकर, महाकविकृत इस सौन्दर्य-गर्भ महाकाव्य का समग्र बिम्ब-विधान उनकी सहजानुभूति की उदात्तता का भाषिक रूपायन है, जो इन्द्रिय-बोध की भूमि से अतीन्द्रिय सौन्दर्य-बोध की सीमा में जाकर निस्सीम बन गया है। उनका समग्र आत्मिक कला-चिन्तन अन्तत: आध्यात्मिक चिन्तन के धरातल पर प्रतिष्ठित हो गया है।
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