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भारण्ड पक्षी
भँवरलाल नाहटा
जीव-जन्तुओं के विविध भेदों का जैसा वर्णन जैनागमों में वर्णित है, वैसा अन्यत्र कहीं भी नहीं मिलता। चौरासी लाख जीव योनि में चार लाख त्रिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय बतलाये गये हैं। त्रिर्यञ्च योनि के जलचर, स्थलचर और खेचर वर्ग में भारण्ड पक्षी चर्म पक्षी जाति का भीमकाय पक्षी है। नर लोक का यह पक्षी समस्त पक्षियों में सर्वाधिक शक्तिशाली है। मनुष्य लोक जो जम्बद्वीप, धातकी खण्ड और पुष्करार्द्ध तक सीमित है, तदतिरिक्त असंख्य द्वीप समुद्र स्वयंभूरमण समुद्रपर्यन्त है। उनमें समुद्ग पक्षी और वितत पक्षी होने का उल्लेख जीवविचारप्रकरण में 'समुग्ग पक्खी अवियय पक्खी' रूप से बल्लाया गया है। जैन साहित्य में "मृग पक्षी शास्त्र' नामक अद्भुत रचना भी उपलब्ध है। इसमें दिगम्बर विद्वान् पं० हंसराज ने संस्कृत में पशु-पक्षियों से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण जानकारी दी है। यह अपने ढंग का अद्वितीय ग्रन्थ है।
पशु-पक्षी हमारे राष्ट्र की अमूल्य सम्पत्ति हैं। मयूर तो हमारा राष्ट्रीय पक्षी माना जाता है। शिकार प्रवृत्ति के कारण अत्यन्त महत्त्वशाली पशु-पक्षियों की जाति ही नष्ट होकर नाम शेष होती जा रही है। गिरनार के सिंह एवं आसाम प्रान्त के मूल्यवान् गैंडे अल्पसंख्या में रह गये हैं और क्रमश: तेजी से कम होते जा रहे हैं। जिराफ का अस्तित्व भूतकाल में भारत में भी था, जिसका चित्र जैसलमेर के श्री जिनभद्र सूरि ज्ञान भण्डार में है। अब वह अफ्रीका में ही रह गया है। आडी और वन कुक्कुट का नामोल्लेख संस्कृत-प्राकृत साहित्य में पाया जाता है। आचार भ्रष्ट वेशधारियों के लिए उन्हें उपमा दी जाती है कि वे न तो साधु हैं और न श्रावक ही, यत:
आडीए मयणमत्ताए, सेविओ वण कुक्कुडो। तेण सो पिल्लओ जाओ, ना आडी न च कुक्कडो।।
अर्थात् मदनोन्मत्त आडी ने वन कुक्कुट से संगम किया, जिसके फलस्वरूप जो पिल्ला हुआ वह न तो आडी है न कुक्कुट, अर्थात् वर्णसंकर है। इस प्रकार संसार का विचित्र स्वरूप है।
यहाँ हमें एक ऐसे ही भीमकाय भारण्ड पक्षी का परिचय कराना अभीष्ट है जो *. ४, जगमोहन मल्लिक लेन, कलकत्ता ७०० ००७.
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