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गत गाथा की अर्द्धाली उद्धृत की है।
हेमचन्द्राचार्यकृत त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित्रगत नेमिनाथचरित्र में वणिक् चारुदत्त द्वारा 'टंकण' पहुंच कर अजपथ द्वारा स्वर्णभूमि जाने के उल्लेख में बकरे की उल्टी खाल की मशक में भारण्ड पक्षी द्वारा ले जाना वर्णित है।
__ अरब के उपन्यासों में सिन्दबाद की जो कहानी आती है वह भी भारण्ड पक्षी जैसे किसी भीमकाय पक्षी से सम्बन्धित है और वसुदेवहिण्डी की कथा से उसका आशय बहुत कुछ एक-सा है। सिन्दबाद ने विश्व भ्रमण किया था। वह कहता है- मैं एक बार जहाज में बैठकर किसी द्वीप में गया, खाना-पीना करके मैं सो गया। सभी सहयात्री मुझे सोया हुआ छोड़कर चले गये। मैं नींद से जगकर इधर-उधर घूमता हुआ एक बड़े भारी अण्डे के पास पहुँचा। इतने में ही वहां एक भीमकाय पक्षी आकर उतरा, उसका पैर विशाल वृक्ष की जड़ जैसा था। मैं अपनी पगड़ी से उसके पैरों के साथ बंध गया। पक्षी उड़ कर पहाड़ की तलहटी में गया। मैंने वहां उतर कर बड़े-बड़े हीरों का संग्रह किया और थैले में भर लिए। वहां सामने की पहाड़ी से व्यापारी लोगों ने मांस का पिण्ड फेंका था जिस पर अनेक हीरे चिपक गए थे। मैं उस मांस के पिण्ड को अपनी पीठ पर डाल कर सो गया। भीमकाय पक्षी ने आकर मुझे उठा लिया और पहाड़ पर लाकर रखा। व्यापारियों ने पक्षी को उड़ा दिया और मुझसे हीरे मांगे। मैंने उन्हें अपने बड़े-बड़े हीरे तो नहीं दिये पर मांस पर चिपके हुए छोटे हीरे उन्होंने ले लिये।
इस कथा में भारण्ड पक्षी के दो मस्तकादि लक्षणों का अभाव होते हुए भी रत्न प्राप्ति की कथारूढ़ि एक-सी है। अमेरिका में अब भी ऐसे भीमकाय पक्षी पाये जाते हैं जिनका फैलाव ३० फुट तक हो जाता है। शिल्प-स्थापत्य में भी भारण्ड पक्षी की आकृति उत्कीर्णित की जाती थी। भगवान् ऋषभदेव के तक्षशिला पधारने पर उनके पुत्र बाहुबलि द्वारा प्रभु के कायोत्सर्ग स्थान पर स्तूप निर्माण कराने का उल्लेख जैन साहित्य में प्राप्त है। समय-समय पर इसके जीर्णोद्धार होने के बावजूद भी जो अन्तिम रूप तक्षशिला (पाकिस्तान) में विद्यमान है उसकी बर्हिवर्ती दीवाल के तोरण पर भारण्ड पक्षी का चित्र उत्कीर्ण है वह निश्चित ही जैन शिल्प का प्रतिनिधित्व करने वाला है। इसका चित्र जैनजर्नल, भाग ६ के प्रथम अंक में प्रकाशित है।
इस प्रकार एक ऐतिहासिक किन्तु काल के प्रभाव से लुप्त पक्षीराज भारण्ड का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है। सम्भव है मनुष्य क्षेत्र के बर्हिवर्ती द्वीपान्तरों में यह पक्षी विद्यमान भी हो। जैसे कि आज भीमकाय पशु-पक्षियों के अवशेष भूगर्भ से खदाई में प्राप्त होते हैं, कहीं से प्राप्त हो तो शोधकर्ता अधिकारी विद्वान् उस पर विशेष प्रकाश डालेंगे। स्थापत्य और प्राचीन चित्रादि के आधार से यथास्मृति एक रेखाचित्र मैंने अपने पुत्र पदम से अंकित कराया है, जो यहाँ दिया जा रहा है।
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