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Achar
श्वेताम्बर दिगम्बर धृत्वा सन्मतिं चारित्रं, स्याद्वादं हृदि सादरं । श्वेताम्बर दिगम्बर-समन्वयो निगद्यते ॥
नाम अधिकार जैन-यह त्रिकालाबाधित सत्य है कि-जिसमें सन्मति सद् रूप और सत् तत्व के प्रणेता भगवान् सन्मति वगैरह देव हैं सम्यक दर्शन सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र युक्त पूज्य श्री चारित्र विजयजी वगैरह गुरुवर है तथा नय निक्षेप सप्तभंगी और प्रमाणों से सापेक्ष स्याद्वाद ज्ञान आगम है, वहीं धर्म विश्वव्यापी होने के लायक है। दिगम्बर--ऐसा तो सिर्फ दिगम्बर जैन धर्म ही है।
जैन--महानुभाव ? जैन धर्म तो इन लक्षण से युक्त हैं ही ! किन्तु आपने दिगम्बर का विशेषण लगाकर उसको एकान्तवाद में जकड़ लिया है एवं बेकार बना दिया है । वास्तव में भिन्न भिन्न नयो की अपेक्षा से भिन्न २ दर्शन बने हैं। वैसे एकान्त मताग्रह स दिगम्बर वगैरह संप्रदाय बने हैं। एकान्तिक संप्रदाय कतई विश्वव्यापी धर्म नहीं हो सकता है।
दिगम्बर--जैन धर्म में श्वेताम्बर और दिगम्बर ये दो मान शाखाये हैं। मानता हूं कि श्वेताम्बर धर्म भूठा है दिगम्बर सच्चा है।
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