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श्रमण : अतीत के झरोखे में
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विगत हजार वर्ष के जैन इतिहास का सिंहावलोकन-क्रमश:
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ई० सन् १९६४ १९६४ १९६४ १९६५ १९६५ १९६५ १९६७ १९६७ १९६६
श्रमण और श्रमणोपासक श्रावक किसे कहा जाय श्रावक के गुण एवं भेद-क्रमशः
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३-११ ३-१४ ३-१९ २५-२९ १०-२३ ३-११
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श्री जयभिक्खु के ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद श्री लालाभाई वीरचन्द देसाई ‘जयभिक्खु' शास्त्र वाचना की आज फिर आवश्यकता है श्वेताम्बर जैनों के पूजाविधियों का इतिहास (क्रमश:)
१९६६ १९६८ १९६८ १९५७ १९६६ १९६६ १९६६
२५-३४ २८-३७ ४-७ ४-५ २-१४ ३-१४
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श्वेताम्बर-परम्परा में श्रावक के गुण और भेद