Book Title: Shraman Atit ke Zarokhe me
Author(s): Shivprasad, Vijay K Jain, Sudha Jain, Asim Mishra
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 453
________________ Jain Education International ४४० लेख अपना और पराया अपने को पहचानिये अपराध की औषधि : क्षमा अपरिग्रहवाद -क्रमश: . श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक ___ वर्ष अंक मुनिश्री महेन्द्रकुमार जी (प्रथम) महात्मा भगवानदीन जी श्रीकृष्ण 'जुगनू' ३६८ श्री रघुवीरशरण दिवाकर २ १० ३ २ Ka waunu d alway For Private & Personal Use Only ई० सन् १९८४ १९८१ १९८५ १९५१ १९५१ १९५१ १९५२ १९५२ १९५२ १९५३ १९५३ १९६१ १९६० १९५८ 9 °r »s rm » » » « rai पृष्ठ १०-१४ १-६ ७-९ ९-१४ १२-१४ १८-२० ३४-३६ २५-२९ ३-८ ८-१२ ११-१५ २३-२५ ४१-४३ २२-२५ २-६ ३५-३६ ४७-५० ܙ ܝ " १२ अपरिग्रह अथवा अकर्मण्यता अपरिग्रह और आज का जैन समाज अपरिग्रह के तीन उपदेष्टा अपनी परमात्म शक्ति को पहचानो अपने व्यक्तित्व की परख कीजिये अपरिग्रह की नई दशा श्री गोपीचन्द धारीवाल मुनिश्री समदर्शी डॉ० गुलाबचन्द्र चौधरी श्री सौभाग्यमल जैन श्री जे० एन० भारती श्री जमनालाल जैन १९८१ www.jainelibrary.org १० ३३ ६ ९ १९५५ १९५८

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