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वर्ष २३
अंक १०
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४८२ लेख श्रमण और वैदिक साहित्य में स्वर्ग और नरक श्रमण एवं ब्राह्मण परम्परा में परमेष्ठी पद संस्कृत और प्राकृत का समानान्तर अध्ययन संस्कृत शब्द और प्राकृत अपभ्रंश सम्राट अकबर और जैनधर्म सर्वोदय और जैन दृष्टिकोण सांख्य और जैन दर्शन साम्यवाद और श्रमण विचारधारा स्थानाङ्ग और समवायाङ्ग - क्रमश:
श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री धन्यकुमार राजेश साध्वी (डॉ०) सुरेखा जी श्री श्रीरंजन सूरिदेव डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन डॉ० सागरमल जैन श्री महावीरचंद धारीवाल डॉ० रमेशचन्द्र जैन श्री पृथ्वीराज जैन पं० बेचरदासं दोशी
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ई० सन् १९७२ १९९२ १९७५ १९७७ १९९७ १९६४ १९७७ १९४९ १९६४ १९६४ १९९६ १९९२ १९९३ १९५५ १९७०
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पृष्ठ ३-९ ५५-६७ ३-८ १८-२० ७१-७६ ३३-३६ १४-१९ २२-२७ २-६ २-८ ३६-५२ ९१-१०२ १४-१८ ३८-४० १३-१७
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स्थानाङ्ग एवं समवायाङ्ग में पुनरावृत्ति की समस्या डॉ० अशोककुमार सिंह स्याद्वाद एवं शून्यवाद की समन्वयात्मक दृष्टि डॉ० (कु०) रत्ना श्रीवास्तव हिन्दू एवं जैन परम्परा में समाधिमरण : एक समीक्षा डॉ० अरुणप्रताप सिंह हिन्दू-बनाम-जैन
प्रो० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य हेल्मुथफोन ग्लासनप और जैनधर्म
श्री सुबोधकुमार जैन ७- विविध अध्ययन : एक सुझाव
श्री महेन्द्र राजा
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