________________
Jain Education International
वर्ष
अंक
लेख स्याद्वाद और अनेकान्तवाद स्याद्वाद और सप्तभंगी-एक चिन्तन स्याद्वाद एक परिशीलन -क्रमशः
श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक पं० दरबारीलाल कोठिया प्रो० सागरमल जैन श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री
is vor o ra auror w
ई० सन् १९६४ १९९० १९६९ १९६९ १९६९ १९९७ १९५२ १९८४
३६७ पृष्ठ १७-२० ३-४४ १५-२० ८-१५ १३-२१ १-१३ ३-८ १५-२३ २५-२८ १७-२० २४-२८
For Private & Personal Use Only
डॉ० सीताराम दुबे श्री चन्द्रशंकर शुक्ल श्रीमती मंजू सिंह डॉ० मोहनलाल मेहता श्री कस्तूरमल बांठिया मुनिश्री नेमिचन्द्र जी
१९५०
स्याद्वाद की अवधारणा : उद्भव एवं विकास स्यादवाद की सर्वप्रियता सूत्रकृतांग में प्रस्तुत तज्जीव तच्छरीवाद सौन्दर्य का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण । हम अनेकान्तवादी हैं या एकान्तवादी ? हर क्षेत्र में अनेकान्तवाद का प्रयोग हो हरिभद्र की क्रान्तदर्शी दृष्टि, धूर्ताख्यान के सन्दर्भ में हरिभद्र के धर्म-दर्शन में क्रान्तिकारी तत्त्व : सम्बोधप्रकरण के सन्दर्भ में हिन्दी जैन कवियों का आत्म-स्वातंत्र्य हिंसा-अहिंसा का जैन दर्शन
१९५८ १९५९
प्रो० सागरमल जैन
३९
४
१९८८
२१-२५
x xox
डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव डॉ० मोहनलाल मेहता
१९८८ १९६३ १९८०
९-२० २७-३० १२-१४
३१
www.jainelibrary.org