________________
श्रमण : अतीत के झरोखे में
Jain Education International
E : : 3
ई० सन् १९६३ १९६४ १९६३
३१७ पृष्ठ १९-२० १४-२३ ७-८
१९९१
७-९
* * * *
७३-८८ ३-१४ ५७-७० ५७-७६
१९९१ १९९०
For Private & Personal Use Only
लेख डॉ० भयांणी के व्याख्यान मेरी पंजाब यात्रा स्वामी विवेकानन्द श्रीप्रकाश पाण्डेय आचारांग में अनासक्ति जैन आगम और गुणस्थान सिद्धान्त समयसार के अनुसार आत्मा का कर्तृत्व-अकर्तृत्व एवं भोक्तृत्व-अभोक्तृत्व के सूत्रकृतांग में वर्णित दार्शनिक विचार पं० श्रीमलजी म० सा०
अहिंसा का व्यावहारिक रूप के अहिंसा की तीन धारायें है आचरण या शोधपीठ
पाप क्या है ? प्रेमयोगी महावीर श्रमण भगवान् महावीर का दीक्षा दर्शन संस्मरणात्मक श्रद्धांजलि सम्यक् दृष्टिकोण सत्य पारखी दृष्टि
* : - *
१९६० १९५८ १९५८ १९६० १९६१ १९६३ १९६३ १९६०
२८-३१ ३४-३७ ४१-४६ १९-२१ १५-१६ ४४-४८ ४१-४५ २५-२९
* * *
६-७ ६-७ . ११-१२ ७-८
www.jainelibrary.org