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श्रमण : अतीत के झरोखे में
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अंक
ई० सन् १९६४ १९६१ १९६१
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पृष्ठ ९-१३ ३५-४० ८-९ २४-२८ ३२-३६
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के साधु संस्था और लोकशिक्षण
श्रमणों का युगधर्म हर क्षेत्र में अनेकान्तवाद का प्रयोग हो क्षमापना नेमिशरण मित्तल ग्रामदान से ग्राम-स्वराज्य मानवसाध्य है या साधन श्राप क्या ? वरदान क्या ? प्रकाशचन्द जैन आदीश जिन प्रकाश मुनि जी जीवन विकास की प्रेरणा : सहयोग संयममूर्ति गुरुदेव प्रकाश मेहता सिर्फ फैशन की खातिर
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