Book Title: Shantinath Purana
Author(s): Asag Mahakavi, Hiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Lalchand Hirachand Doshi Solapur
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विषय सूची
प्रथम सर्ग
मंगलाचरण और कवि प्रतिज्ञा
जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में सीता नदी के दक्षिण तट पर वत्सकावती देश है । उसकी सुषमा अपार है ।
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वत्सकावती देश में प्रभाकरी नगरी है; जो पृथिवी तल पर अपनी उपमा नहीं रखती ।
प्रभाकरी नगरी का राजा स्तिमित सागर था ।
३१-४० 1
जो बल बुद्धि और विवेक से सुशोभित था । राजा स्तिमितसागर ४१-५१ की दो रानियां थीं १. वसुन्धरा और २. वसुमति । वसुन्धरा रानी के अपराजित नामका पुत्र हुआ जो सचमुच ही अपराजित - अजेय था । वसुमति नामक दूसरी रानी के अनन्तवीर्य नामका पुत्र हुआ जो बड़ा पराक्रमी था । अपराजित और अनन्तवीर्य में स्वाभाविक प्रीति थी । इन दोनों पुत्रों से राजा स्तिमितसागर की प्रभुता सर्वत्र व्याप्त हो गई । एक समय वनपाल ने सूचना दी कि पुष्पसागर नामक उद्यान में स्वयंप्रभ जिनेन्द्र देवों के साथ विराजमान हैं । राजा स्तिमितसागर यह सुन बड़ा प्रसन्न हुआ और सैनिकों तथा परिवार के सब लोगों के साथ उनकी वन्दना के लिये गया । देवरचित समवसरण में उसने प्रवेश किया, तीन प्रदक्षिणाएं देकर स्वयंप्रभ जिनेन्द्र को नमस्कार किया । तदनन्तर धर्मश्रवरण कर ज्येष्ठ पुत्र को राज्यलक्ष्मी सौंपकर दिगम्बर दीक्षा धारण कर ली । उसी समवसरण में महान् ऋद्धियों के धारक धरणेन्द्र को देखकर उसने धरणेन्द्र पद का निदान किया-ऐसी भावना की कि मैं भी धरणेन्द्र का पद प्राप्त करूं । अपराजित ने अणुव्रत धारण किये परन्तु अनन्तवीर्य के हृदय में तीर्थंकर स्वयंप्रभजिनेन्द्र के वचन स्थान नहीं पा सके ।
श्लोक
१-६
1
७-२० 1
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२१-३० 1
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५५-६४ ।
६५-७३
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पृष्ठ
१-२
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८- ६
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