Book Title: Sara Samucchaya
Author(s): Kulbhadracharya, Shitalprasad
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 15
________________ (१४) १३३ १३५ m 32 १३७ १३९ १४० १४१ १४२ १४३ १४३ २३ काम-क्रोधादि हानिकारक हैं २४ कलह व विवाद नहीं करना २५ वीतराग-विज्ञानमय मार्ग दुर्लभ है २६ स्वाधीन सुख ही सच्चा सुख है २७ परिग्रह सुखका बाधक है २८ दुःखमें शोच वृथा है २९ ज्ञान पानेका फल स्वरूपरमणता है ३० सच्चा धन क्या है ? ३१ लौकिक भोग तृप्तिकारी नहीं ३२ आत्मा ही सच्चा तीर्थ है ३३ जलस्नानसे आत्मशुद्धि नहीं ३४ तत्त्वज्ञानका स्नान सच्चा स्नान है ३५ शरीर शुचि नहीं हो सकता ३६ शुद्धि क्या वस्तु है ३७ मनुष्यजन्मकी सफलता ३८ पाप रहित वचन बोलो ३९ संसार दुःखके क्षयका उपाय अनुवादककी प्रशस्ति अकारादि क्रमसे श्लोक-सूची १४४ १४४ १४६ १० १४७ १४८ १४८ १५१ १५३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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