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कामवासनाकी असारता
५३ उनके लिए दुर्लभ हो जाता है। अतएव जो विषयलम्पटी हैं वे मूर्ख हैं।
स्मरेणातीवरौद्रेण नरकावर्तपातिना ।
अहो खलीकृतो लोको धर्मामृतपराङ्मुखः ॥१०॥ . अन्वयार्थ-(अहो) बड़े खेदकी बात है कि (नरकावर्तपातिना) नरकरूपी गड्डेमें पटकनेवाले (अतीवरौद्रेण) अत्यन्त भयानक (स्मरेण) कामने (लोकः) मानवोंको (खलीकृतः) दुष्ट बना दिया है तथा (धर्मामृतपराङ्मुखः) धर्मरूपी अमृतके पानसे छुड़ा दिया है ।
भावार्थ-यह काम बड़ा ही भयानक वैरी है । जो इसके आधीन हो जाते हैं वे अन्यायमें प्रवर्तकर नरकवासमें गिर जाते हैं। उनके परिणाम धर्मकी ओरसे बिलकुल दूर हो जाते हैं । उनको इस मानव-जन्ममें कभी धर्मामृतके पीनेका अवसर नहीं मिलता है। उनकी चेष्टा एक दुष्ट मानवके समान हो जाती है जो रातदिन अपने स्वार्थके आधीन होकर परका बुरा करनेमें ग्लानि नहीं मानते हैं।
स्मरेण स्मरणादेव वैरं दैवनियोगतः ।
हृदये निहितं शल्यं प्राणिनां तापकारकम् ॥१०१॥ अन्वयार्थ-(दैवनियोगतः) कर्मोंके तीव्र उदयसे (स्मरेण) कामदेवके द्वारा (स्मरणात् एव) उस कामके स्मरण मात्रसे ही (प्राणिनां हृदये निहितं) प्राणियोंके हृदयमें बैठी हुई (शल्यं) शल्य (तापकारकम्) संतापको उत्पन्न करनेवाली है (वैरं) शत्रुता एवं दूसरोंका अत्यन्त बुरा करनेवाली है। ____ भावार्थ-कामभावकी तीव्रता जब वेद नोकषायके तीव्र उदयके परिणामोंमें बैठ जाती है तब जब कभी उसका विशेष स्मरण आता है तब कामका काँटासा चुभता है, जिससे घोर दुःख होता है । इष्ट विषयकी ओर परिणाम बड़े आकुलित हो जाते हैं । घबड़ा-घबड़ाकर वह महान कष्ट पाता है । यही कामकी शल्य तीव्र पाप बाँधकर आत्माका अत्यन्त बुरा करनेवाली है।
तस्मात्कुरुत सदवृत्तं जिनमार्गरताः सदा ।
येन सत्खंडितां याति स्मरशल्यं सुदुर्धरम् ॥१०२॥ अन्वयार्थ-(तस्मात्) इसलिए (जिनमार्गरताः) जिनमार्गमें रत रहते हुए (सदा) निरन्तर (सद्वृत्तं) उस सम्यक्चारित्रका (कुरुत) पालन करो (येन) जिस सम्यक्चारित्रके द्वारा (सुदुर्धरम्) अत्यन्त कठिन (स्मरशल्यं) कामरूपी शल्यके (सत्खंडितां याति) सैंकड़ों टुकड़े हो जाते हैं।
पाठान्तर-१. तत्खण्डशो।
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