Book Title: Sara Samucchaya
Author(s): Kulbhadracharya, Shitalprasad
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 168
________________ १५१ अनुवादककी प्रशस्ति दोहा मंगल श्री अरहंत हैं, मंगल सिद्ध महान । मंगल सूरि उवझाय हैं, मंगल साधु प्रमान ॥ इति श्रीमत्कुलभद्राचार्यविरचित सारसमुच्चय-ग्रन्थ समाप्त अनुवादककी प्रशस्ति दोहा गुडगांवा फर्रुखनगर, है विख्यात सुथान । अग्रवाल शुभ वंशमें, गोयल गोत्र महान ॥१॥ पृथ्वीराज गृहस्थ हैं, जैनधर्म लवलीन । पेडा बाँटे नगरमें, नाम सभी रखदीन ॥२॥ सुत ज्वालापरसाद हैं, ता सुत इन्दरराज । ता सुत हैं रायसिंहजी, चले सुवाणिज काज ॥३॥ आये लक्ष्मणपुर बसे, हुए धनी व्यापार । ता सुत मंगलसैनजी, हैं विद्वान अपार ॥४॥ ता सुत मक्खनलालजी, तिनके सुत दो आज । संतलालजी प्रथम हैं, तृतिय जु सीतल साज ॥५॥ विद्या पढ गार्हस्थमें, बत्तिस वय उलझाय । चित उदास श्रावक भये, भ्रमत धर्म लव लाय ॥६॥ उन्निससौपर बानवे, विक्रम संवत आय । लक्ष्मणपुर वासा किया, वर्षामें सुखदाय ॥७॥ जैन दिगम्बर घर यहाँ, शत संख्या अनुमान । साधत धर्म सुप्रेमसे, मानत श्री जिन आन ॥८॥ चौक गंज अहिया तथा, गंज सआदत जान । डालिगंज चार्वागमें, मन्दिर षष्ठ प्रमान ॥९॥ गृह चैत्यालय तीन हैं, बालक शाला जान । औषधिशाला एक है, जैन बाग सुखदान ॥१०॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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