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कामशमनका उपाय स्नानसे कामका राग बढ़ता है। ५. ताम्बूल कामभोगको जगानेवाला है इससे पान नहीं खाना । ६. स्त्री-संभोगका निमित्त बचाकर स्त्री सेवन नहीं करना । ७. इच्छाको ज्ञानके मननसे रोकना । ८. पिछले भोगोंको याद नहीं करना इत्यादि और भी बाहरी साधनोंको रखना । जैसे एकांतमें स्त्रीके साथ नहीं बैठना-उठना, हास्य-वार्तालाप नहीं करना, सादगीसे अपने शरीरको रखना, समयका विभाग करके किसी न किसी उपयोगी काममें लगे रहना । इत्यादि उपायोंसे कामका वेग जीत लिया जाता है।
काममिच्छानिरोधेन क्रोधं च क्षमया भृशं ।
जयेन्मानं मृदुत्वेन मोहं संज्ञानसेवया ॥११७॥ अन्वयार्थ-(इच्छानिरोधेन) इच्छाको रोक करके (काम) काम भावको (च क्षमया क्रोध) तथा क्षमाभावसे क्रोधको, (मृदुत्वेन मानं) मार्दवभावसे मानको, (संज्ञानसेवया मोह) सम्यग्ज्ञानकी सेवासे मोहको (भृशं जयेत्) अच्छी तरह जीते ।
भावार्थ-जब कामसेवनका भाव पैदा हो तो उस समय इच्छाको उसी तरह रोक दे जैसे खिड़कीको बंद करके पवनके वेगको रोकते हैं। उस समय विचार करे कि काम आत्माका शत्रु है । इसके वश हो जाऊँगा तो सर्वस्व गँवाऊँगा । जब कभी क्रोध आ जावे या आनेका निमित्त बने, तब सहनशीलतापूर्वक क्षमाभावसे उसे जीते । प्रायः जब कोई अपना बुरा करता है तब ही क्रोध आता है। अपना बुरा या तो वह करेगा जिसको हमने पहले कुछ हानि पहुँचाई है अथवा कोई मूर्ख करेगा। दोनों ही क्षमाके पात्र हैं। पहली दशामें हम अपने कृत्यका फल भोग रहे हैं, दूसरी दशामें अज्ञानीपर ज्ञानियोंको क्षमा ही कर्तव्य है। धन, अधिकार, विद्या आदिका मान-भाव आवे तब इन सबको क्षणभंगर जानकर मान न करे, विनय गुणको पाले, सबके साथ कोमलतासे वर्ते । सांसारिक पदार्थोंके भीतर मोह सताये तब शास्त्रके द्वारा तत्त्वोंका विचार करे। संसारके अनित्य स्वभावका एवं मुक्तिके नित्य स्वभावका चिन्तवन करे। इन उपायोंसे कामभाव, क्रोधभाव, मानभाव व मोहको उद्यम करके अच्छी तरह जीतना चाहिए । जो जीते वही वीर हैं।
तस्मिन्नुपशमे प्राप्ते युक्तं सवृत्तधारणं ।
तृष्णां सुदूरतस्त्यक्त्वा 'विषान्नमिव भोजनं ॥११८॥ अन्वयार्थ-(तस्मिन् उपशमे प्राप्ते) कामभोगके शान्त हो जानेपर (सवृत्तपाठान्तर-१. विषाक्तमिव ।
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