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सम्यक्चारित्र-चिन्तामणि के चरणोंका बार-बार आश्रय ले-उनकी सेवा कर तूं शीघ्र ही मुक्तिका सुख प्राप्त कर, दुःखी क्यो हो रहा है ?
भावार्थ-संसारके दुःखोसे छूटनेका उपाय सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र है। सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति जिनेन्द्रदेवकी उपासनासे होती है, सम्यग्ज्ञानकी प्राप्ति जिनवाणीके श्रवणसे होती है और सम्यक्चारित्रको प्राप्ति निर्ग्रन्थ गुरुओकी सेवासे होती है। अत इस विधिसे तीनोको प्राप्तकर तूं मोक्षको प्राप्तकर, कायर हो व्ययं ही क्यो दुःखी हो रहा है ॥ ८४ ॥ इस प्रकार सम्यक्चारित्र-चिन्तामणिमे चारित्रलब्धिका सक्षिप्त वर्णन करनेवाला चारित्रलब्धि नामका
द्वितीय प्रकाश पूर्ण हुआ।
तृतीय प्रकाश महाव्रताधिकार
मङ्गलाचरण वैराग्यसीमानममेयमाना
मारुह्य मुक्ता भवभोगभूमिः। आज्ञा च भूमिः शिवसौख्यलक्षम्या
येन स्वयं तं विनमामि नेमिम् ॥१॥ अर्थ-जिन्होने वैराग्यकी अपरिमित-उत्कृष्ट सीमापर आरूढ होकर संसार सम्बन्धी भोगोको भूमिका परित्याग किया और मोक्ष सुखरूप लक्ष्मीको स्वयं प्राप्त किया उन नेमिनाथ भगवानको मैं नमस्कार करता हूँ॥१॥ आगे महाव्रतोके निरूपणकी प्रतिज्ञा, महाव्रतका लक्षण तया नाम
कहते हैंअथ प्रवक्ष्यामि महावतानि धृतानि सद्भिः शिवसौख्यकामः। विनान यरत्र जनाः कदाचिद रोधं समर्था भवबन्धनानि ॥२॥ यानि स्वयं सन्ति महान्ति लोके महड्रीिशविघृतानि यानि । महत्फलं यानि विशन्ति नाम महावतानीह मतानि तानि ॥३॥