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सप्तम प्रकाश अर्थ-यह तप आचार साधुओको प्रमुख क्रिया है। इसोके द्वारा सभी कर्म विलय-विनाशको प्राप्त होते हैं । इसो तप आचारमे कर्मनिर्जराके इच्छुक मुनि सिंहनिष्क्रीडित आदि बड़े-बड़े कठिन व्रत धारण कर तपस्या करते हैं। इन व्रतोका विधि-विधान हरिवंश पुराण ( ३४ वां सर्गसे ) जानना चाहिये ।। ११४-११६ ॥ आगे वोर्याचारका वर्णन करते हैं
बीर्याचारमथाधिस्य प्रवीमि किश्चित्र भोः । यथाजातः स्वतो बालः स्वशक्तिवर्धयन क्रमात् ॥ ११७ ॥ उत्तुङ्गगिरिशृङ्गषु चटित जायते क्षमः । तथा सुदीक्षितः साधुः स्ववीयं वर्धयन् क्रमात् ।। ११८॥ मातापनादियोगेषु दक्षो दक्षतरो भवेत् । वीर्य स्यावात्मवः शक्तिर्बलं शारीरिक मतम् ॥ ११९ ॥ पुरस्तादात्मवीर्यस्य बलं तुच्छ हि दृश्यते । कृतमासोपवासो य सोऽपि शलशिलातले ॥ १२० ।। करोत्यातापनं योगं चित्रं बीर्य तपस्विनाम् । अघ्रावकाशं शीतों हिमाच्छावितकानने ॥ १२१ ॥ प्रावृदकालेऽपि वर्षाभिः सागरीकृतभूतले। वर्षायोग च संघस्य पादपानामधस्तले ॥१२२ ॥ प्रोष्मतौं तप्तभूखण्डे शैले तप्तशिलोच्चये। आतापनं महायोगं धृत्वा तिष्ठन्ति योगिनः ॥ १२३ ॥ वीर्याचारस्य मध्ये तु मुनयो ध्यानतत्पराः।
नानासनानि संघृत्य तिष्ठन्ति गहने वने ॥ १२४ ।। अर्थ-अब वोर्याचारका आश्रयकर यहां कुछ कहता हूँ। जिस प्रकार उत्पन्न हुआ बालक स्वयं हो क्रम-क्रमसे अपनी शक्तिको बढाता हुआ उन्नत पर्वतको चोटियोपर चढ़नेमे समर्थ होता है उसी प्रकार दोक्षित मुनि क्रमस अपनी शक्तिको बढ़ाते हुए आतापनादि योगोमे अत्यन्त समर्थ हो जाते हैं। आत्माकी शक्तिको वोर्य और शारीरिक शक्तिको बल कहते हैं। आत्मशक्तिके सामने शारीरिक बल तुच्छ दिखाई देता है। मासोपवासो मुनि भो पर्वत शिलातलपर आतापन योग धारण करते हैं। सचमुच हो तपस्वियोका वोर्य आश्चर्यकारक होता है। जब बन बर्फसे आच्छादित रहता है ऐसो शीत ऋतुमे मुनि अभावकाशखुले मैदान में तप करते हैं। वर्षाले जब स्थल समुद्रका रूप धारणकर