Book Title: Samyak Charitra Chintamani
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 206
________________ १७८ सम्यक्चारित्र-चिन्तामणि ( अंकुर उत्पादनको शक्तिसे युक्त गेहूँ, चना तथा मुनक्काका बीज आदि ), १२ फल (जामुन आदि सचित्त फल ), १३ कन्द (जमीकंद आल, सूरण, शकरकन्द आदि ) और १४ मूल ( मूली तथा पिप्पली आदि)। इन १४ मलोमें कुछ महामल हैं और कुछ अल्पमल हैं। कोई महादोष हैं और कोई अल्प दोष । जैसे रुधिर, मास, हड्डो, चर्म और पोप ये महादोष हैं। आहारमे इनके आ जाने पर आहार छोड़ दिया जाता है तथा प्रायश्चित भी किया जाता है । आहारमें इन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जोवका कलेवर यदि आ जाय तो आहार छोड़ देना चाहिये । बाल निकलने पर आहार छोड देना चाहिये । नखके निकलने पर आहार छोडकर कुछ प्रायश्चित लिया जाता है। कण, कुण्ड, बोज, कंद, फल और मूलके आने पर यदि ये अलग किये जा सकते हो तो अलगकर आहार लिया जा सकता है और अलग न किये जा सकने पर आहार छोड देना चाहिये। बत्तीस अन्तराय १ काक-चर्याके लिये जाते समय मुनिके ऊपर यदि काक या वक आदि पक्षो बोट कर दे तो यह काक नामका अन्तराय है। २ अमेध्य-चर्याके लिये जाते समय यदि साधुका पैर विष्ठा आदि अपवित्र पदार्थसे लिप्त हो जाय तो अमेध्य नामका अन्तराय ३ छदि-चर्याके लिये जाते समय मुनिको यदि वमन हो जाय तो छदि नामका अन्तराय है। ४. रोधन-चर्याक लिए जाते समय साधुको यदि कोई रोक दे या पकड ले तो रोधन नामका अन्तराय है। ५ रुधिर-यदि आहार करते समय साधुके शरीरसे रुधिर निकल आवे या किसी अन्यके शरोरसे निकलता हुआ रुधिर दिख जाय तो रुधिर नामका अन्तराय है। ६ अश्रुपात-दुःखके कारण अपने या सामने खडे किसी अन्य व्यक्तिके नेत्रसे अश्रुपात होने लगे तो अश्रुपात नामका अन्तराय है। ७ जान्वषः परामर्श-घुटनोंसे नीचेके भागका यदि हापसे स्पर्श हो जाय तो जान्वधः परामर्श नामका अन्तराय है।

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