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द्वारा प्रकाश
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सचितत्यागी ( पञ्चम् प्रतिमा ) का लक्षण
सचि वस्तु नो भुङ्क्ते योऽम्भः पत्रफलाविकम् । स सचितपरित्यागी कथ्यते दयया युतः ॥ १०४ ॥
अर्थ -- जो दयासे युक्त होता हुआ पानी, पत्र तथा फलादिक सचित्त वस्तुको नही खाता है वह सचित्त त्यागी पन्चम श्रावक कहलाता है ॥ १०४ ॥
रात्रिभुक्ति त्यागी ( वष्ठ प्रतिमा ) का स्वरूप
रात्रिमध्ये न यो भुङ्क्ते भोजनं च चतुविधम् ।
रात्रिभुक्ति परित्यागी षष्ठोऽमी श्रावक. स्मृतः ॥ १०५ ॥
अर्थ -- जो रात्रिमे चार प्रकार का भोजन नही करता है वह रात्रिमुक्ति त्यागी षष्ठ श्रावक कहलाता है ।। १०५ ।।
ब्रह्मचारी ( सप्तम प्रतिमा ) का लक्षण दारमात्रपरित्यागी ब्रह्मचारी समुच्यते । विरक्तिभावमापन्नो विभीतश्च भवार्णवात् ।। १०६ ।।
अर्थ -- जो स्त्री मात्रका परित्यागी है, वैराग्यभावको प्राप्त है तथा संसार सागर भयभीत है वह ब्रह्मचारी सप्तम प्रतिमाका धारी श्रावक कहलाता है ॥ १०६ ॥
आरम्भत्यागी ( अष्टम प्रतिमा ) का लक्षण सन्तुष्टोऽन्यगतस्पृहः ।
पुरासंचित वित्तेषु
व्यापारस्य परित्यागी त्यक्तारम्भः समुच्यते ॥ १०७ ॥
अर्थ -- जो पहले संचित किये हुए धनमे संतुष्ट है, अन्य धनमे जिसकी इच्छा समाप्त हो गई है और जिसने व्यापारका परित्याग कर दिया है वह आरम्भत्यागो अष्टम प्रतिमाधारो श्रावक कहलाता है ॥ १०७ ॥
अपरिग्रह ( नवम प्रतिमा ) का लक्षण
मुक्त्वा ह्यावश्यकं वस्त्रं भाजनं च कटादिकम् । यो नान्यद्धनमावत्ते सोऽपरिग्रह उच्यते ॥ १०८ ॥ अर्थ- जो आवश्यक वस्त्र, बर्तन और चटाई आदिको छोडकर अन्य परिग्रहको ग्रहण नहीं करता है वह अपरिग्रह नवम प्रतिमाधारी श्रावक कहलाता है || १०८ ॥