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atter प्रकाश
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अर्थ -- औपशमिक, वेदक अथवा क्षायिक सम्यक्त्वसे सहित, शान्तचित्तके धारक मनुष्य और क्षायिक सम्यक्त्व को छोड़कर शेष दो सम्यग्दर्शनों सहित तिर्यञ्च भी कषायोंकी मन्दतासे देशचारित्रको प्राप्त होते हैं । ये मनुष्य और तिर्यञ्च भव्य, निकट संसारी और भवभोगोसे विरक्त रहते हैं। ठीक ही है लोकमें कषायो की मन्दता से क्या-क्या सिद्ध नही होता है । इस लोकमे मिथ्यादृष्टि भी कहीं कालofous प्रभावसे एक साथ सम्यक्त्व और देशसयम को एक साथ प्राप्त कर लेते हैं। जिन मनुष्य और तिर्यञ्चोंके देवायु को छोड़कर परमव सम्बन्धी अन्य आयु को सत्ता है वे देशचारित्र को प्राप्त नहीं होते । देशचारित्र उन्हे प्राप्त होता है जिन्होने परभव सम्बन्धी आयु का बन्धन किया हो और किया हो तो देवायुका हो किया हो, वे ही इस जगत् में देशसंयम ग्रहण करने के योग्य होते हैं । यह व्यवस्था संयम -सकलचारित्र ग्रहण करनेके विषय मे भी ज्ञानी जनोके द्वारा ज्ञातव्य है ।। १७-२३ ।।
आगे देश- चारित्रको धारण करते समय प्रथमोपशम सम्यग्दृष्टि जीव कितने करण करता है? यह कहते हैं
आद्योपशमसम्यक्ाव सहितो मानवो मृगः ।
लभते यदि चारित्रं संयमासंयमाभिधम् ॥ २४ ॥ परिणामविशध्यादधः कुरुते करणत्रयम् । अध प्रवृत्तप्रभृति मावशुद्धिसमन्वितम् ॥ २५ ॥
अर्थ - प्रथमोपशम सम्यग्दृष्टि मनुष्य अथवा तिर्यञ्च यदि संयमासयम नामक देशचारित्र को ग्रहण करता है तो वह भावोको विशुद्धियुक्त होता हुआ भावशुद्धि सहित अध प्रवृत्त आदि तोनो करण करता है ।। २४-२५ ।।
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आगे वेदक सम्यग्दृष्टि अथवा वेदक कालके भीतर रहने वाला मिथ्या• दृष्टि जीव, देशसयम प्राप्त करनेके लिये कितने करण करता है यह कहते हैं-
वेवकेन युतः कश्चिद् यद्वा मिध्यादृगेव वा ।
अन्तर्वेदक कालस्यः समं वेदक सदृशा ॥ २६ ॥
प्राप्नोति देशचारित्रं युगपत् अनिवृति बिहावासों कुरुते
क्षीणसंसृतिः । करणद्वयम् ॥ २७ ॥