Book Title: Samyak Charitra Chintamani
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 201
________________ परिशिष्ट १७३ बनाया आहार पूति दोषसे दूषित माना जाता है। इसी तरह ओखली आदि के विषयमें जानना चाहिये । ४. मिश्र दोष – जो अन्न, गृहस्थों और पाखण्डियोको साथ-साथ दिया जाता है, वह मिश्र दोष है । ५. स्थापित दोष - जिस बर्तन मे भात आदि बना है उससे निकाल कर चौकाके बाहर अपने घरमे रखना या अन्यके घरमे पहुंचाना स्थापित दोष है । ६. बलि दोष-यक्ष, नाग आदिके लिये जो नैवेद्य तैयार किया गया है, वह बलि कहलाता है। इस बलिमेसे कुछ आहार साधुको देना बलि दोष है । ७. प्रावर्तत दोष- अन्य तिथियोमे देने योग्य आहारको पूर्व तिथियोमे देना और पूर्वतिथिमे देने योग्य आहार आगामी तिथिमे देना अथवा पूर्वाह्न मे देने योग्य वस्तु अपराह्नमे देना और अपराह्न मे देने योग्य वस्तु प्रावर्तित पूर्वाह्नमे देना प्रावर्तित दोष है। यह प्राभृत दोष भी कहलाता है । ८. प्रादुष्कार दोष -- बर्तन, भोजन तथा स्थान आदिका दिखावा कर बनाया हुआ आहार प्रादुष्कार दोषसे दूषित माना गया है । ९. क्रीत दोष - साधुको आया देख अपने यहाँ कमी होनेपर घो, दूध, फल आदिको तत्काल खरीदकर देना, क्रोत दोष है । १०. प्रामुष्य दोष – अपने घर साधुके आने पर पड़ोसी के यहाँ से उधार लेकर किसी वस्तुको देना प्रामृष्य दोष है, इसे ऋण दोष भी कहते हैं । ११. परिवर्तक दोष -साधुके आनेपर अपने घर मोटे चावलोसे बना भात आदि आहार पड़ोसीके घरसे अच्छे चावलोंका भात आदि बदल कर देना परिवर्तक या परावर्तित दोष है । १२. अमिघट दोष -- जिस चौकामें साधु गये हैं उस चौकाका आहार तो ग्राह्य है ही उसके अतिरिक्त सरल पंक्तिमे स्थित तीन या सात घर आया हुआ आहार भी ग्राह्य है। इससे अधिक दूरीसे आया आहारा ग्राह्य नहीं है । वह अभिघट दोष से दूषित कहलाता है ।

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