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परिशिष्ट
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४. भाजीपक बोष-जाति, कुल, शिल्प, तप और ईश्वरता ये आजीव हैं, इनसे आहार प्राप्त करना आजीवक दोष है। ये साधु हमारो जाति या कुलके हैं, ये अनेक शिल्पके ज्ञाता है, तपस्वी हैं और ये पहले हमारे स्वामी रहे हैं अथवा इनको बड़ी प्रभुता रही है, इस विचारसे जो आहार दिया जाता है और साधु उसे लेता है तो वह आजीवक दोष है।
५. बनीपक दोष-'अमुक-अमुक व्यक्तियोको दान देनेमे पुण्य होता है या नहीं इस प्रकार दाताके पूछने पर उसके अनुकूल वचन कहना तथा उससे प्रसन्न होकर दाता जो बाहार देता है और साधु लेता है तो वह वनीपक दोष है।
६. चिकित्सा दोष-गृहस्थको किसो रोगकी चिकित्सा (औषध) बताना उससे प्रभावित होकर गृहस्थ आहार देता है तथा साधु उसे ग्रहण करता है तो वह चिकित्सा दोष होता है ।
७. क्रोध दोष-क्रोध दिखाकर गृहस्थसे आहार प्राप्त करना क्रोध दोष है।
८ मान दोष-मान दिखाकर गृहस्थसे आहार प्राप्त करना मान दोष है।
९. माया दोष-माया दिखाकर गृहस्थसे आहार लेना माया दोष है।
१०. लोम बोष-लोभ दिखाकर गृहस्थसे आहार लेना लोभ दोष है।
११. पूर्वस्तुति दोष-आहारके पूर्व हो गृहस्थको प्रशंसा करना जैसे आप बड़े दानो हैं, आपके सिवाय इस ग्राममे साधुओंको आहार देने वाला कौन है ? इस प्रकारकी प्रशंसासे प्रभावित होकर गृहस्थ जो आहार देता है और साधु उसे लेता है तो वह पूर्वस्तुति दोष है।
१२. पश्चात् स्तुति दोष-आहार लेनेके बाद गृहस्थकी प्रशंसा करना जिससे वह पुनः भी आहार दे। इस तरह जो माहार प्राप्त किया जाता है वह पश्चात् स्तुति दोष है।
१३. विद्या दोष-मैं तुम्हे अमुक विद्या दूंगा। इस प्रकार विद्याका प्रलोभन देकर गृहस्थसे जो आहार लिया जाता है वह विद्या दोष है । *विधा और मन्त्र में अन्तर-विद्या सिद्ध करने पर काम देती है और मन्न,
माता मानसे काम देता है।