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वयोदश प्रकार
१५ स्ववीय वृत्तरत्नमत्र दुर्लभ परं मत । इमे हरन्ति वचनापरा नराधमा इह ॥४५॥ प्रमावनिद्रिता दश प्रमुञ्चत प्रमुञ्चत । धरस्व संयम दूत नियम्य दुर्धरं मनः ॥ ४६ ॥ पराजितो विधीयतां हषीक शत्रुसंचयः।
मनुष्य जन्म सार्थक विधीयता विधीयताम् ।। ४७ ॥ अर्थ-ऐ प्रमादो मनुष्यो। शोघ्र हो सावधान होओ, इन्द्रिय वेषको धारण करनेवाले ये चोर घूम रहे हैं । तुम्हारा चारित्ररूपी रत्न इस लोकमे दुर्लभ माना गया है। धोखा देनेमे तत्पर रहने वाले ये अधम मनुष्य उस संयमरूपो रत्नका हरण कर रहे हैं, अपनो अत्यधिक निद्रा दशाको छोडो, छोडो। दुर्धर मनको रोककर शीघ्र हो सयमको धारण करो। इन्द्रियरूपो शत्रुओके समूहको पराजित करो और मनुष्य जन्मको सार्थक करो, सार्थक करो॥४४-४७ ।। इस प्रकार सम्यक् चारित्र-चिन्तामणि ग्रन्थमे संयमासयमलब्धिका संक्षिप्त वर्णन करनेवाला
त्रयोदश प्रकाश पूर्ण हुआ।