Book Title: Samyak Charitra Chintamani
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 188
________________ १६० सम्यक्चारित्र-चिन्तामणिः अनुमतिविरत ( दशम प्रतिमा ) का लक्षण व्यापारगृह निर्माण प्रभृतो नानुमोदनम् । कुरते यः स विशेयोऽनुमतेविरतोगृही ॥१०९।। अर्थ--जो व्यापार तथा गृह निर्माण आदिमे अनुमोदना नहीं करता है उसे अनुमतिविरत श्रावक जानना चाहिये ॥ १०६ ।। ___ उद्दिष्टरयाग ( ग्यारहवीं प्रतिमा ) का स्वरूप उद्दिष्टं चान्नपानादि यो न गृह्णाति जातुचित् । ज्ञेय उद्दिष्ट सन्त्यागी स एकादश उत्तम. ॥११०॥ उहिष्टत्याग भेदस्य द्वो मेवी च निरूपितो। ऐलक क्षुल्लकश्चेति प्रसिद्धौ चरणागमे ॥१११॥ कौपीनमात्रकं धत्ते लिङ्गावरणमेलकः। क्षल्लकस्त समादत्तेऽतिरिक्त खण्डवस्त्रक्म ॥११२॥ ऐलक पाणिभोज्यस्ति क्षल्लक पात्रभोजिक । उपविश्यव भजाते क्षल्लको ह्येलकस्तथा ॥ ११३॥ ऐलक कुरुते लुञ्चं केशानां च यथाविधि । क्षल्लकोऽपनयेत केशान कर्तर्यापि करेण वा॥११४॥ केकि पिच्छ च गलीतो जीवानां रक्षणाय तो। शौचबाधानिवृत्यर्थमाददाते कमण्डलुम् ॥ ११५।। आर्या धत्ते सितां शाटी षोडशहस्तसंमिताम् । क्षल्लिका च समादत्ते धवल तूत्तरच्छदम् ॥११६॥ ऐलकवत् परिज्ञेय आसां चर्यादिसंविधिः। आर्यिकास्तूपचारेण महाव्रतयुता मताः ॥११७॥ क्षुल्लिकाः श्राविका एव वर्तन्ते नात्र संशय ।। यः कृतं सफल जन्म निर्दोषाचार धारणात् ।। ११८॥ धन्यास्ते धन्यभागास्ते शुष्कप्रायभवार्णवाः। मुनीनां महता वृत्तं रक्षितुं शक्नुवन्ति नो ॥११९॥ तेषां कृते प्रयासोऽयं श्रावकाचार वर्णने । जैनधर्मो यतः सर्वजीवानां हित कारकः ॥ १२० ॥ अर्थ--जो अपने उद्देश्यसे बनाये गये अन्न पानोको कभी ग्रहण नही करता वह उदिष्ट त्यागी एकादश प्रतिमाधारो उत्तम श्रावक माना गया है। उद्दिष्ट त्याग प्रतिमाके दो भेद कहे गये हैं--एलक और क्षुल्लक । ये दोनो भेद चरणानुयोग मे प्रसिद्ध है। ऐलक कौपीन

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