________________
एकादश प्रकाश
जीव यदि विधिपूर्वक संन्यास मरण करता है तो वह सात-आठ भवमें नियमसे निर्वाणको प्राप्त होता है। संसार वनमे भ्रमण करते हुए तूने बालबाल, बाल और बालपण्डितमरण बहुत किये है। आज पण्डितमरण प्राप्त हुआ है सो इसे निर्मल-निर्दोष कर। पण्डितमरण प्राप्त होनेपर पण्डितपण्डितमरण सुलभ हो जावेगा, अतः शीघ्र हो साहस कर। निर्यापकाचार्यके वचन सुनकर क्षपक शुद्धचित्तसे पञ्चनमस्कार मन्त्रका ध्यान करता हआ प्राण छोडता है। संन्यासमरणके प्रभावसे क्षपक स्वर्ग जाता है तथा वहाँ चिरकालतक भोग भोगता है। साथ ही मेह-नन्दीश्वर आदिके शाश्वत अकृत्रिम चैत्यालयोको बन्दना करता है ॥ ३३-४१॥
भावार्थ-संक्षेपमे मरणके पांच भेद हैं-१ बालबाल, २ बाल, ३ बालपण्डित ४ पण्डित और ५. पण्डित-पण्डित । मिथ्यादृष्टिके मरणको बालबालमरण कहते हैं। अविरत सम्यग्दृष्टिके मरणको बालमरण कहते हैं। देशविरत-श्रावकके मरणको बालपण्डितमरण कहते हैं। मुनिके मरणको पण्डितमरण कहते हैं और केवलीके (मरण) निर्वाणको पण्डितपण्डितमरण कहते है। आगे सल्लेखनाके प्रकरणका समारोप कहते हैंमनसि ते यदि नाकसुखस्पृहा
कुरु हचि जिनसंयमषारणे । भज जिनेन्द्रपदं श्रयशारदा
जिन मुबाजभवां सुगुरून नम ॥ ४२ ॥ अर्थ-यदि तेरे मनमे स्वर्ग सुखको चाह है तो जिनेन्द्र प्रतिपादित संयमके धारण करनेमे रुचि कर, जिनेन्द्रदेवके चरणोको आराधना कर, जिनेन्द्रके मुखकमलसे समुत्पन्न वाणीका आश्रय लें और सुगुरुओंको नमस्कार कर ॥ ४२ ॥
इस प्रकार सम्यक् चारित्र-चिन्तामणिमें संन्यास-सल्लेखनाका
वर्णन करनेवाला एकादश प्रकाश समाप्त हुआ।