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सम्पचारित्र-चिन्तामणि प्रत्याख्यान है, जैसे- इस उपसर्गसे बचेंगे तो आहार लेंगे, अन्यथा त्याग है। विनयशुद्ध आदि प्रत्याख्यानके चार भेद निम्न प्रकार है
१ विनयशुद्ध, २ अनुभाषाशुद्ध, ३ अनुपालनाशुद्ध और १. परिणामशुद्ध।
१ विनयगुट प्रत्याख्यान-विनय सम्बन्धी शुश्केि साथ उपवास करना विनयशुद्ध प्रत्याख्यान है।
२. अनुभाषाशुद्ध प्रत्याख्यान-गुरुवचनके अनुरूप वचन बोलना, अक्षर पद आदिका शुद्ध उच्चारण करना अनुभाषाशुद्ध प्रत्याख्यान है।
३. अनुपालनाशुब प्रत्याख्यान-आकस्मिक व्याधि अथवा उपसर्ग आदिके समय किया गया प्रत्याख्यान अनुपालना शुद्ध प्रत्याख्यान है।
४. परिणामशुद्ध प्रत्याख्यान-राग-द्वेषसे अदूषित परिणामोसे जो प्रत्याख्यान किया जाता है वह परिणामशुद्ध प्रत्याख्यान है।
प्रतिक्रमणमे और प्रत्याख्यानमे क्या विशेषता है, इसको चर्चा आचार वृत्तिमे इस प्रकार की है
"प्रतिक्रमणप्रत्याख्यानयोः को विशेष इतिचेन्नैष दोषोऽतीत् विषयातीचारशोधनं प्रतिक्रमणमतीतभविष्यद्वर्तमानकालविषयातिचारनिहरण प्रत्याख्यानमथवा व्रताखतीचारशोधनं प्रतिक्रमणमतीचारकारणसचित्ताचित्तमिश्राव्यविनिवृत्तिस्तपोनिमित्तं प्रासुक व्यस्य च निवृत्तिः प्रत्याख्यानं यस्मादिति ।" ___ अर्थात् भूतकाल सम्बन्धी अतिचारोका शोधन करना प्रतिक्रमण है और भूत, भविष्यत् तथा वर्तमानकाल सम्बन्धी अतिचारोंका निराकरण करना प्रत्याख्यान है अथवा व्रतादिके अतिचारोका शोधन करना प्रतिक्रमण है और अतिचारोके लिये कारणभूत सचित्त, मचित्त तथा मिश्र द्रव्योका त्याग करना एवं तपके लिये प्रासुक द्रव्यका भी त्याग करना प्रत्याख्यान है।
भूतकालिकदोषाणां परिहारे पाठ उभ्यते।
मनसा गदगोभूय पठितव्यो मनीषिभिः ।। ९३ ॥ अर्थ-भूतकालिक दोषोका परिहार करनेके लिये पाठ कहा जाता है। ज्ञानोजनोको मनसे गद्गद होकर वह पाठ पढ़ना चाहिये ।। ६३ ॥ १. मूलाचार, गापा ६४१-६४५ ।