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पैचम प्रकाश इत्थं विचार्य नियो गन्धलोमं विमुञ्चति । स्वात्मन्येव रतो योगी परगन्ध न कानति ॥ २४ ॥ दुर्गन्ध वा सुगन्धे वा घ्राणेन्द्रियजयो मुनिः।
माध्यस्थ्यं याति वस्तूनां स्वरूपं चिन्तयन् सदा ॥ २५॥ अर्थ-लाल पीले कमलोके समूहसे व्याप्त खिलते हुए सफेद कमलोके समूहसे मणि और कमलोको केशरसे पीतवर्ण जलसे युक्त जलाशयमे सुगन्धिकाका पान करता हुआ गन्धका लोभो भ्रमर संध्याके समय निमोलित -सकुचित कमलमे यह विचार करता हुआ स्थित हो गया कि प्रातःकाल सूर्योदय होनेपर जब कमल खिलेगा तब मैं शीघ्र ही अपने इष्ट स्थानपर उड जाऊंगा। उधर रात्रिके प्रथम भागमे पानी पोनेके लिये एक हाथी आया और पानी पोकर उस कमलिनीको चबा गया। भ्रमर अपने विचारोके साथ मृत्युको प्राप्त हो गया। जिस प्रकार भ्रमर सुगन्धके लोभसे मृत्युको प्राप्त हुआ उसो प्रकार यह मनुष्य सुगन्धके लोभसे अनेक कष्टोको प्राप्त होता है। ऐसा विचारकर निग्रंन्य मुनि गन्धका लोभ छोडते है। अपने आत्मस्वरूपमे रमण करने वाले योगो अन्य गन्धकी इच्छा नही करते । घ्राणेन्द्रिय-जयो मुनि वस्तुओके स्वरूपका विचार करते हुए दुर्गन्ध या सुगन्धमे माध्यस्थ्य भावको प्राप्त होते है ।। १८-२५॥ आगे चक्षु-इन्द्रिय विजयका वर्णन करते हैं
उज्ज्वलज्ज्योतिराकाझी चक्षुविषयसंगतः। शलभो मृत्युमायाति यथायं मानवस्तथा ॥ २६ ॥ अय गौरो ह्ययं श्यामो रक्तोऽयं पोत एव स । एवं विकल्पजालेन गृहस्थाः सन्ति पीडिताः ॥ २७ ॥ गौराङ्गी रोचते मह्य श्यामाङ्गो नंव रोचते। इस्थ विकल्पजालान्तः पतिता भविनो जनाः॥ २८॥ रोषं तोष च विधाणाः कुर्वते कर्मबन्धनम् । मुनयो वीतरागाधा रागद्वेषबहिर्गताः ॥ २९ ॥ चिन्तयन्त्यात्मरूपं तु रूपगन्धाविजितम् ।
आत्मध्यानरतानां कि रूपं कश्च वा रतः॥३०॥ अर्थ-उज्ज्वल ज्योतिको चाहने वाला, चक्षु विषयका लोभी पतंगा जिस प्रकार मृत्युको प्राप्त होता है उसी प्रकार यह मनुष्य भो चक्षु इन्द्रिय के विषयका लोभो बन मृत्युको प्राप्त होता है। यह गौर वर्ण है