Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation

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Page 12
________________ समकित-प्रवेश, भाग-1 प्रवेश : भाईश्री ! सिद्ध परमेष्ठी के सभी कर्म नष्ट हो गये हैं, जबकि अरिहंत परमेष्ठी के अघाति कर्म बचे हुए हैं। फिर भी णमोकार मंत्र में सिद्ध परमेष्ठी से पहले अरिहंत परमेष्ठी को नमस्कार क्यों किया गया है? समकित : क्योंकि सिद्ध भगवान शरीर, वाणी आदि से रहित हैं और मोक्ष में रहते हैं। लेकिन अरिहंत भगवान जब तक सिद्ध नहीं हो जाते तब तक शरीर, वाणी आदि के साथ हमारे बीच में रहते हैं व अनका उपदेश होता है। उनके उपदेश से हमारा भला होता है। उनका उपकार हम पर ज्यादा है। इसलिए णमोकार मंत्र में सिद्ध भगवान से पहले उनको नमस्कार किया गया है। प्रवेश : भाईश्री ! आचार्य, उपाध्याय और साधु परमेष्ठी का स्वरूप भी समझा दीजिये। समकित : हमारा अगला विषय यही है। अशरीरी-सिद्ध भगवान, आदर्श तुम्हीं मेरे / अविरुद्ध शुद्ध चिद्घन, उत्कर्ष तुम्हीं मेरे / / टेक / / सम्यक्त्व सुदर्शन ज्ञान, अगुरुलघु अवगाहन / सूक्ष्मत्व वीर्य गुणखान, निर्बाधित सुखवेदन / / हे गुण अनन्त के धाम, वन्दन अगणित मेरे / रागादि रहित निर्मल, जन्मादि रहित अविकल / कुल गोत्र रहित निष्कुल, मायादि रहित निश्छल / / रहते निज में निश्चल,निष्कर्म साध्य मेरे / रागादि रहित उपयोग, ज्ञायक प्रतिभासी हा। स्वाश्रित शाश्वत-सुख भोग, शुद्धात्म-विलासी हो / / हे स्वयं सिद्ध भगवान, तुम साध्य बनो मेरे / भविजन तुम-सम निज-रूप, ध्याकर तुम-सम होते। चैतन्य पिण्ड शिव-भूप, होकर सब दुख खोते / / / चैतन्यराज सुखखान, दुख दूर करो मेरे / 1.devoided 2.salvation 3.preachings 4.compassion

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