Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation

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Page 10
________________ अरिहंत-सिद्ध (सच्चे देव) समकित : जैसा कि हमने देखा कि हम प्रतिदिन' णमोकार मंत्र का पाठ करके पंच परमेष्ठियों को नमस्कार करते हैं। लेकिन उनके बारे में समझे बिना उनको नमस्कार करना सच्चा नमस्कार नहीं है। प्रवेश : भाईश्री ! तो फिर पंचपरमेष्ठी के बारे में हमे समझाईये न ? समकित : हाँ सुनो ! मैं एक-एक करके समझाता हूँ। अरिहंत परमेष्ठी- जिन्होंने गृहस्थपना त्यागकर, मुनिधर्म' अंगीकार कर, स्वंय को जानकर, मानकर व स्वयं में लीन होकर चार घाति कर्मों का नाश करके अनंत चतुष्टय (अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत सुख, अनंत वीर्य) प्रगट किया है, उन्हें अरिहंत परमेष्ठी कहते हैं। प्रवेश : भाईश्री ! ये घाति-कर्म क्या होते हैं ? समकित : घात का मतलब है-नुकसान पहुँचाना। जो कर्म हमारे गुणों का घात करते हैं यानि कि हमें नुकसान पहुंचाते हैं, उन्हें घाति-कर्म कहते हैं। प्रवेश : भाईश्री ! क्या अनंत-ज्ञान आदि चार ही अरिहंत परमेष्ठी के गुण हैं ? समकित : यह चार तो उनके मुख्य-गुण हैं। इनके अलावा और भी गुण हैं। उनकी बात समय मिलने पर करेंगे। समकित : सिद्ध परमेष्ठी- जिन्होंने गृहस्थ अवस्था का त्यागकर, मुनिधर्म अंगीकार कर, स्वयं की साधना से चार घाति-कर्मों को नाश" कर अरिहंत-दशा प्रगट करके, कुछ समय बाद आयु पूरी होने पर बाकी चार अघाति-कर्मों का भी नाश होने पर, शरीर आदि का संबंध" छूट जाने से पूर्ण मुक्त दशा को प्राप्त कर लिया है व लोक में सबसे ऊपर सिद्ध शिला के ऊपर विराजमान हैं। उन्हें सिद्ध परमेष्ठी कहते हैं। 1.daily 2.chanting 3.familyhood 4.monkhood 5. self 6.belief 7.immersed 8.achieve 9.harm 10.major qualities 11.destroy 12.omniscient state 13.bondage 14.liberate 15.seated

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