Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana Author(s): Mangalvardhini Punit Jain Publisher: Mangalvardhini Foundation View full book textPage 8
________________ णमोकार मंत्र णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व साहूणं समकित : णमोकार मंत्र जैन धर्म का मूल मंत्र है। इसे पंच नमस्कार मंत्र, __अपराजित मंत्र आदि नामों से भी जाना जाता है। यह एक अनादि-निधन' मंत्र है। प्रवेश : भाईश्री ! इसका अर्थ क्या है ? समकित : लोक में सब अरिहंतों को नमस्कार हो, सब सिद्धों को नमस्कार हो, सब आचार्यों को नमस्कार हो, सब उपाध्यायों को नमस्कार हो और सब साधुओं को नमस्कार हो। प्रवेश : अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय व साधु कौन हैं ? समकित : यह पंच-परमेष्ठी या पंच-परमेष्टी कहलाते हैं। प्रवेश : परमेष्ठी व परमेष्टी में क्या अंतर है ? समकित : जो परम-पद में स्थित हैं, उन्हें परमेष्ठी कहते हैं व जो परम-इष्ट हैं, उन्हें परमेष्टी कहते हैं। दोनों एक ही बात है, क्योंकि जो परमपद में स्थित हैं, वही तो हमारे परम इष्ट हैं। प्रवेश : भाईश्री ! णमोकार मंत्र मे इन पंच परमेष्ठियों को क्यों नमस्कार किया गया है ? समकित : उन जैसे गुणों को पाने के लिये उनको नमस्कार किया गया है। 1.eternal 2.universe 3.supreme-states 4.most-favored 5.qualitiesPage Navigation
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