Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-1 प्रवेश : भाईश्री ! अघाति-कर्म किसे कहते हैं ? समकित : जो कर्म हमारे गुणों (अनुजीवी) का घात नहीं करते यानि कि हमें कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं उन्हें अघाति कर्म कहते हैं। प्रवेश : भाईश्री ! इसका अर्थ यह है कि अरिहंत परमेष्ठी के चार घाति-कर्म नष्ट हो गये हैं और सिद्ध परमेष्ठी के चार घाति व चार अघाति यानि कुल-मिलाकर' सभी आठों कर्म नष्ट हो गये हैं ? समकित : हाँ, बिल्कुल सही कहा। प्रवेश : भाईश्री ! जैसे अरिहंत परमेष्ठी के चार घाति कर्म नष्ट होने से चार मुख्य गुण (अनंत चतुष्टय) प्रगट हुए हैं। उसी तरह सिद्ध परमेष्ठी के बाकी चार अघाति कर्म नष्ट होने से चार और कौनसे गुण प्रगट हुए समकित : चार घाति कर्मों के साथ-साथ चार अघाति कर्मों का भी नाश हो जाने से सिद्ध परमेष्ठी के कुल आठ गुण प्रगट हो गये हैं: 1. अनंत ज्ञान 2. अनंत दर्शन 3. अनंत सुख (क्षायिक-सम्यक्त्व) 4. अनंत वीर्य 5. अव्यावाधत्व 6. अवगाहनत्व (अक्षय-स्थिति) 7. सूक्ष्ममत्व (अरूपित्व) 8. अगुरुलघुत्व प्रवेश : भाईश्री ! यह सब तो बहुत कठिन है। हमें तो अरिहंत व सिद्ध परमेष्ठी का सामान्य-स्वरूप ही समझा दीजिये। समकित : तो सुनो ! जो स्वयं को जानकर, मानकर व स्वयं में पूर्णरुप-से लीन होकर, पूर्ण-वीतरागी', पूर्ण-ज्ञानी व पूर्ण-सुखी हो गये हैं, वे अरिहंत और सिद्ध परमेष्ठी हैं। व यही सच्चे-देव हैं। 1.in-totality 2.destroy 3.remaining 4.general-aspect 5.completely 6.completely detached 7.omniscient 8.completely blissful 9.true god