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चन्द्रसूरि गच्छ के उपाश्रय में ही मिली थी, प्रकाशित करवाई और उसके बाद क्रमशः गाथा सहस्री, कल्पसूत्र की कल्पलता टीका, कलिकाचार्य कथा (स.१६६६), सप्तस्मरण वृत्ति, समाचारी शतक (स०१६६६) आदि बड़े-बड़े प्रथ सम्पादित कर प्रकाशित करवाये । इसके पूर्व भी विशेषशतक (सं० १९७३), जयतिहुअणवृत्ति, दुरियरवृत्ति (सं० १९७२-७३), जिनदत्तसूरि ग्रन्थमाला से वे प्रकाशित करवा चके थे। इनके अतिरिक्त इससे पूर्व कविवर की संस्कृत रचनाओं में दशवैकालिकवृत्ति, अल्पबहुत्त्वगर्भित वीरस्तवस्वोपज्ञवृत्ति, श्रावकाराधना और अष्टलक्षी ये चन्द ग्रन्थ ही विविध स्थानों से छपे थे। सं० २००८ में बुद्धिमुनिजी ने चातुर्मासिक व्याख्यान पद्धति प्रकाशित की। राजस्थानी भाषाओं की रचनाओं में शत्रुञ्जय रास, दानादि चौढालिया, ज्ञानपञ्चमी, एकादशी आदि के पूर्व वर्णित स्तवन, सज्झाय, 'रत्नसागर', 'रत्न समुच्चय' और हमारे प्रकाशित 'अभयरत्नसार' आदि में बहुत पहले ही छप चुके थे। देसाई ने भी उन्हें प्राप्त कुछ छोटे-मोटे गीत और वस्तुपाल तेजपालरास, सत्यासिया दुष्काल वर्णन आदि जैनयुग (मासिक) में प्रकाशित किये थे। हमने कविवर की रचनाओं में सर्वप्रथम 'जैनज्योति' मासिक पत्र में पुन्जा ऋषिरास सं.१९८७ में प्रकाशित करवाया और कवि के मृगावतीरास के आधार से 'सती-मृगावती' पुस्तक लिखकर सं० १९८६ में प्रकाशित की। उसके बाद तो कविवर सम्बन्धी कई लेख जैन, कल्याण (गुज०), भारतीय विद्या (सत्यासीया दुष्काल वर्णन छत्तोसी), नागरी प्रचारिणी पत्रिका, जैन-भारती, जैन जगत आदि पत्रों में प्रकाशित किये।
सं० १९८६ में ही हमें कविवर के जीवनी संबंधित उन्हीं के शिष्य हर्षनंदन और देवीदास रचित 'समयसुंदरोपाध्यायनाम् गीत द्वयम् का एक पत्र प्राप्त हुआ, जिनकी नकल हमने देसाईजी को भेजकर जैनयुग गत वर्ष धनदत्त रास व प्रियमेलक रास का सार भी जैनभारती और मरुभारती में प्रकाशित किया गया है।
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