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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम
[प्रथमोऽध्यायः
सूत्र-रूपिष्ववधेः ॥ २८ ॥ भाष्यम्-रूपिष्वेव द्रव्येष्ववधिज्ञानस्य विषयनिबन्धो भवति असर्वपर्यायेषु । सुविशुद्धेनाप्यवधिज्ञानेन रूपीण्येव द्रव्याण्यवधिज्ञानी जानीते तान्यपि न सर्वैः पर्यायैरिति।
____ अर्थ-अवधिज्ञानका विषय रूपी द्रव्यही है। किन्त वह भी सम्पूर्ण पर्यायों करके युक्त नहीं है । क्योंकि अवधिज्ञानी चाहे जैसे अतिविशुद्ध अवधिज्ञानको धारण करनेवाला क्यों न हो, परन्तु वह उसके द्वारा रूपी द्रव्योंको ही जान सकता है, अन्योंको नहीं । तथा रूपी द्रव्योंकी भी सम्पूर्ण पर्यायोंको नहीं जान सकता ।
क्रमानुसार मनःपर्यायज्ञानका विषय बताते हैं
सूत्र-तदनन्तभागे मनःपर्यायस्थ ॥२९॥ ___भाष्यम्-यानि रूपीणि द्रव्याण्यवधिज्ञानी जानीते ततोऽनन्तभागे मनःपर्यायस्य विष. यनिबन्धो भवति । अवधिज्ञानविषयस्यानन्तभागं मनःपर्यायज्ञानी जानीते रूपिद्रव्याणि मनोरहस्यविचारगतानि च मानुषक्षेत्रपर्यापन्नानि विशुद्धतराणि चेति।। ___अर्थ-जितने रूपी द्रव्योंको अवधिज्ञान जान सकता है, उसके अनन्तवें भागको मनःपर्यायज्ञानी जान सकता है । अवधिज्ञानका जितना विषय है, उसका अनन्तवां भाग मनःपर्याय ज्ञानका विषय है । क्योंकि मनःपर्यायज्ञानी अन्तरङ्गमें स्थित अतएव अन्तःकरण. रूप मनके विचारोंमें प्रात-आये हुए रूपी द्रव्योंको तथा मनुष्य क्षेत्रवर्ती अवधिज्ञानकी अपेक्षा अतिशय विशुद्ध-सूक्ष्मतर और बहुतर पर्यायोंके द्वारा उन रूपी द्रव्योंको जान सकता है ।
भावार्थ-मनःपर्यायज्ञानका विषय अवधिके विषयसे अनन्तैकभागप्रमाण रूपी द्रव्य है। परन्तु वह भी असर्वपर्यायही है । अपने विषयकी सम्पर्ण पर्यायोंको नहीं जान सकता। फिर भी वह अधिकतर सूक्ष्म विषयको विशेषरूपसे जानता है, अतएव प्रशस्त है।
__ क्रमानुसार केवलज्ञानका विषयनिबन्ध बतानेको सूत्र कहते हैं:- सूत्र-सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य ॥ ३०॥ __भाष्यम्-सर्वद्रव्येषु सर्वपर्यायषु च केवलज्ञानस्य विषयनिबन्धो भवति । ताद्ध सर्वभावग्राहकं संभिन्न लोकालोकविषयम् । नातःपरं ज्ञानमस्ति। न च केवलज्ञानविषयात्परं किंचिदन्यज्ज्ञेयमस्ति । केवलं परिपूर्ण समग्रमसाधारणं निरपेक्षं विशुद्धं सर्वभावज्ञापकं लोकालोकविषयमनन्तपर्यायमित्यर्थः ॥
अर्थ-केवलज्ञानका विषय निबन्ध संपूर्ण द्रव्य और उनकी संपूर्ण पर्यायोंमें है । क्योंकि वह द्रव्य क्षेत्र काल भाव विशिष्ट तथा उत्पाद व्यय ध्रौव्यरूप सभी पदार्थोंको ग्रहण करता है, सम्पूर्ण लोक और अलोकको विषय किया करता है । इससे बड़ा और कोई भी ज्ञान नहीं है, और न ऐसा कोई ज्ञेय ही है, जो कि केवलज्ञानका विषय होनेसे बाकी बच रहे ।
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