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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
[ सप्तमोऽध्यायः
: भाष्यम्-अत्राह-उक्तं भवता हिंसादिभ्योविरतिव्रतमिति,तत्र का हिंसानामेति।अत्रोच्यते
अर्थ-प्रश्न-आपने ऊपर कहा था, कि हिंसादिक पाँच पापोंसे जीवकी जो निवृत्ति होती है, उसको व्रत कहते हैं । परन्तु जिनसे निवृत्ति होनी चाहिये, उन पापोंका स्वरूप जब तक मालूम न हो जाय, तबतक उनसे जीवकी निवृत्ति वास्तवमें कैसे हो सकती है। किन्तु उक्त हिंसा आदि पापोंका लक्षण अभीतक आपने बताया नहीं है। अतएव कहिये कि हिंसा किसको कहते हैं ? इस प्रश्नके उत्तरमें हिंसा आदि पाँचों पापोंका क्रमसे लक्षण बतानेके अभिप्रायसे सबसे पहले हिंसाका लक्षण बतानेवाला सूत्र कहते हैं:
सूत्र-प्रमत्तयोगात्मणव्यपरोपणं हिंसा ॥ ८॥ भाष्यम्-प्रमत्तो यः कायवाइमनोयोगैः प्राणव्यपरोपणं करोति सा हिंसा । हिंसा मारणं प्राणातिपातः प्राणबधः देहान्तरसंक्रामणं प्राणव्यपरोपणमित्यनान्तरम् ॥
अर्थ-जो कोई भी जीव प्रमादसे युक्त होकर काययोग वचनयोग या मनोयोगके द्वारा प्रोणोंका व्यपरोपण करता है, उसको हिंसा कहते हैं। हिंसा करना, मारना, प्राणों का अतिपात-त्याग या वियोग करना, प्राणोंका बध करना, देहान्तरको संक्रम करा देना-भवान्तर-गत्यन्तरको पहुँचा देना, और प्राणोंका व्यपरोपण करना, इन सब शब्दोंका एक ही अर्थ है।
भावार्थ-यदि कोई जीव प्रमादी होकर ऐसा कार्य करता है-अपने या परके प्राणोंका व्यपरोपण करनेमें प्रवृत्त होता है, तो वह हिंसक-हिंसाके दोषका भागी समझा जाता है। प्रमाद छोडकर प्रवृत्ति करनेवालेके शरीरादिके निमित्तसे यदि किसी जीवका बध हो जाय, तो वह उस दोषका भागी नहीं समझा जाता । क्योंकि इस लक्षणमें प्रमादका योग मुख्य रूपसे बताया है।
भाष्यम्-अत्राह-अथानृतं किमिति । अत्रोच्यते ।___अर्थ-प्रश्न-आपने हिंसाका लक्षण तो बताया । परन्तु उसके अनन्तर जिसका पाठ किया गया है, उस अनृत-असत्यका क्या लक्षण है ? उत्तर
सूत्र-असदभिधानमनृतम् ॥९॥
भाष्यम्-असदिति सद्भावप्रतिषेधोऽर्थान्तरं गर्हा च । तत्र सद्भावप्रतिषेधो नाम सद्भूतनिह्नवोऽभूतोद्भावनं च । तद्यथा-नास्त्यात्मा, नास्ति परलोक इत्यादि भूतनिह्नवः । श्यामाकतण्डुलमात्रोऽयमात्मा अङ्गुष्ठपर्वमात्रोऽयमात्मा आदित्यवर्णो निकिय इत्येवमाद्यमभूतोद्भावनम्। अर्थान्तरम् यो गां ब्रवीत्यश्वश्वं च गौरिति । गहेंति हिंसापारुष्यपैशुन्यादियुक्तं वचः सत्यमपि गर्हितमनृतमेव भवतीति ॥
१-प्रमाद नाम असावधानताका है-इसके मूलभेद १५ हैं।-५ ईन्द्रिय, ४ विकथा, ४ कषाय, १ निद्रा १ प्रणय । उत्तरभेद ८० हैं । विशेष स्वरूप जाननेके लिये देखो, गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ३४-४४ । २-इसका लक्षण आदि पहले बता चुके हैं ।
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