Book Title: Sabhasyatattvarthadhigamsutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Khubchand Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 482
________________ सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । सिद्ध हुआ करते हैं । तथा इनसे भी संख्यातगुणा प्रमाण उनका है, जोकि सामायिकसंयम परिहारविशुद्धिसंयम सूक्ष्मसंपरायसंयम और यथाख्यातसंयम के द्वारा सिद्ध हैं । और जो सामायिक सूक्ष्मसंपराय और यथाख्यातचारित्र द्वारा सिद्ध हैं, उनका प्रमाण उनसे भी संख्यातगुणा है, और उनसे भी संख्यातगुणा प्रमाण उनका है, जोकि छेदोपस्थाप्य सूक्ष्मसंपराय और यथाख्यातचारित्र के द्वारा सिद्ध हैं । इसप्रकार चारित्र के द्वारा सिद्ध-जीवों का अल्पबहुत्व समझना चाहिये । सूत्र ७ । ] P भाष्यम् - प्रत्येक बुद्धबोधितः - सर्वस्तोकाः प्रत्येक बुद्ध सिद्धाः । बुद्धबोधितसिद्धाः नपुंसकाः संख्येयगुणाः । बुद्धबोधितसिद्धाः स्त्रियः संख्येयगुणाः । बुद्धबोधितसिद्धाः पुमान्सः सङ्गख्येयगुणा इति । ज्ञानम् - कः केन ज्ञानेन युक्तः सिध्यति । प्रत्युत्पन्नभावप्रज्ञापनीयस्य सर्वः केवली सिध्यति । नस्त्यल्पबहुत्वम् । पूर्वभावप्रज्ञापनीयस्य सर्वस्तोका द्विज्ञानसिद्धाः । चतुर्ज्ञान - सिद्धाः संख्येयगुणाः । त्रिज्ञानसिद्धाः संख्येयगुणाः । एवं तावद्व्यञ्जिते व्यञ्जितेऽपि सर्वस्तोका मतिश्रुतज्ञानसिद्धाः । मतिश्रुतावधिमनःपर्यायज्ञानसिद्धाः संख्येयगुणाः । मतिश्रुतावधिज्ञानसिद्धाः संख्येयगुणाः । ४५७ अर्थ – प्रत्येकबुद्धसिद्ध और बोधितबुद्धसिद्धों का अल्पबहुत्व इस प्रकार समझना चाहिये | - जो प्रत्येक बुद्धसिद्ध हैं, उनका प्रमाण सबसे कम है । बोधितबुद्धसिद्धों में जो नपुंसक - लिङ्गसे सिद्ध कहे जासकते हैं, उनका प्रमाण प्रत्येकबुद्ध सिद्धोंसे संख्यातगुणा है, और उनसे भी संख्यातगुणा प्रमाण उनका समझना चाहिये, जोकि बोधितबुद्धसिद्धों में स्त्रीलिङ्गसिद्ध कहे जा सकते हैं । तथा इनसे भी संख्यातगुणा प्रमाण जो बोधितबुद्धसिद्ध पुल्लिङ्ग हैं, उनका समझना चाहिये । ज्ञान अनुयोगको अपेक्षा सिद्धोंका अल्पबहुत्व समझने के लिये यह जिज्ञासा हो सकती है, कि किस किस ज्ञानसे युक्त कौन कौन सिद्धि प्राप्त कर सकता है । इसका खुलासा इस प्रकार - प्रत्युत्पन्नभावप्रज्ञापनीयकी अपेक्षा जो सिद्धि प्राप्त हैं, वे सब केवली ही हैं, और केवलज्ञान के द्वारा ही सिद्धि प्राप्त किया करते हैं । अतएव इस अपेक्षामें अल्पबहुत्वका वर्णन नहीं हो सकता । पर्वभावप्रज्ञापनीयनयकी अपेक्षा दो ज्ञानोंसे सिद्ध हुए जीवोंका प्रमाण सबसे अल्प है । इससे संख्यातगुणा प्रमाण चतुर्ज्ञानसिद्धों का है, और चतुर्ज्ञानसिद्धोंसे भी संख्यातगुणा प्रमाण त्रिज्ञानसिद्धों का है । इस प्रकार अव्यञ्जितके विषयमें समझना चाहिये, और व्यञ्जितके विषयमें भी जो मतिज्ञान तथा श्रुतज्ञानके द्वारा सिद्ध हैं, उनका प्रमाण सबसे कम है, ऐसा समझना, और जो मतिश्रुत अवधि और मनःपर्यायज्ञानके द्वारा सिद्ध हुए हैं, उनका प्रमाण उनसे संख्यातगुणा है । तथा इनसे भी संख्यातगुणा प्रमाण उनका है, जोकि मतिज्ञान श्रुतज्ञान और अवधिज्ञानपूर्वक सिद्ध हुए हैं । ५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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