Book Title: Sabhasyatattvarthadhigamsutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Khubchand Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 480
________________ • सूत्र ७ । ] सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । ४५५ अवसर्पिणी कहते हैं, और जिसमें इन विषयोंकी उत्तरोत्तर वृद्धि पाई जाय, उसको उत्सर्पिणी कहते हैं । तथा जिसमें हानि वृद्धि कुछ भी न हो - तदवस्थता - जैसेका तैसा रहे, उसको अनवसर्पिण्युत्सर्पिणी कहते हैं । इन तीनों ही कालोंमें सिद्ध होनेवाले जीवोंका अल्पबहुत्व व्यञ्जित और अन्य - ञ्जित इन विशेष भेदों की अपेक्षा से समझना चाहिये । पूर्वभावप्रज्ञापनीयनयको अपेक्षासे उत्सर्पिणी कालमें सिद्ध होनेवाले जीवोंका प्रमाण सबसे अल्प है । अवसर्पिणीकालमें सिद्ध होनेवाले जीवों का प्रमाण उत्सर्पिणीसिद्धोंसे कुछ अधिक है । किन्तु अनवसर्पिण्युत्सर्पिणी कालमें जो सिद्ध हुए हैं, उनका प्रमाण अवसर्पिणीसिद्धोंसे संख्यातगुणा है । प्रत्युत्पन्नभावप्रज्ञापनीयनयकी अपेक्षासे यदि विचार किया जाय, तो अकालमें सिद्धि होती है । किसी भी कालमें सिद्धि हुई नहीं कही जा सकती । अतएव इस विषयमें अल्प बहुत्व भी नहीं कहा जा सकता । इस प्रकार काल अनुयोगको अपेक्षासे सिद्धोंका अल्पबहुत्व समझना चाहिये । गति अनुयोगकी अपेक्षा से मुक्ति-लाभ करनेवालोंका अल्प बहुत्व इस प्रकार कहा जा सकता है । - प्रत्युत्पन्नभावप्रज्ञापनीयनयकी अपेक्षा लेनेपर तो किसी गति से सिद्धि होती ही नहीं, सिद्धिगतिसे ही सिद्धि कही जासकती है । अतएव इस विषय में अल्पबहुत्व भी नहीं हो सकता । पूर्वभावप्रज्ञापनीयनयकी अपेक्षासे जो अनन्तरपश्चात्कृतिक हैं, वे मनुष्यगति से ही सिद्ध कहे जासकते हैं। अतएव इनका भी अल्पबहुत्व नहीं कहा जासकता । जो परम्परपश्चात्कृतिक हैं । - चारों गतियोंमेंसे किसी भी गति से आकर मनुष्यपर्यायको धारणकर जिन्होंने सिद्धि प्राप्त की हैं, ऐसे मुक्तात्माओंका अल्पबहुत्व अनन्तरगति- मनुष्यगतिसे पूर्वगतिकी अपेक्षा कहा जासकता है । वह चार गतियों की अपेक्षा चार प्रकारका होसकता है । क्योंकि मनुष्यपर्यायको चारों गतिके जीव धारण कर सकते हैं । इनका अल्पबहुत्व इस प्रकार है । - तिर्यग्योनिसे मनुष्यगतिमें आकर जिन्होंने सिद्धि प्राप्त की है, उनका प्रमाण सबसे कम है। इनसे संख्यातगुणा प्रमाण उनका है, जो कि मनुष्यगति से ही मनुष्यपर्याय में आकर सिद्ध हुए हैं । इनसे भी संख्यातगुणा प्रमाण उन सिद्ध-जीवों का है, जो कि नरकगतिसे मनुष्य होकर सिद्ध हुए हैं । तथा इनसे भा संख्यातगुणा प्रमाण उन सिद्धों का है, जो कि देवगतिसे मनुष्यगति में आकर मुक्त हुए हैं । भाष्यम् - लिङ्गम् |- प्रत्युत्पन्नभावप्रज्ञापनीयस्य व्यपगतवेदः सिध्यति । नास्त्यल्पबहुत्वम् । पूर्वभावप्रज्ञापनीयस्य सर्वस्तोका नपुंसकलिङ्गसिद्धाः स्त्रीलिङ्गसिद्धाः संख्ये यगुणाः पुल्लिङ्गसिद्धाः संख्ये यगुणाः । तीर्थम् । - सर्वस्तोकाः तीर्थकर सिद्धाः तीर्थकरतीर्थे नोतीर्थकर सिद्धाः सङ्ख्येयगुणां इति । तीर्थकर तीर्थसिद्धा नपुंसकाः संख्येयगुणाः । तीर्थकरतीर्थसिद्धाः स्त्रियः संख्ये यगुणाः तीर्थकर तीर्थसिद्धाः पुमान्सः संख्येयगुणा इति । अर्थ — लिङ्गकी अपेक्षा सिद्ध जीवोंका अल्पबहुत्व इस प्रकार समझना चाहिये । प्रत्यु - त्पन्नभावप्रज्ञापनीयनयकी अपेक्षा जो सिद्ध होते हैं, वे वेद रहित ही होते हैं, अतएव लिङ्गकी अपेक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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