Book Title: Sabhasyatattvarthadhigamsutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Khubchand Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 356
________________ ३३१ सूत्र ८३९ । ] समाप्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । --- 1 अर्थ - इस सूत्र असत् शब्दके तीन अर्थ हैं - सद्भावका प्रतिषेध और अर्थान्तर तथा गह - निन्दा | वस्तुके स्वरूपका अपलाप करने को सद्भावका प्रतिषेध कहते हैं । यह दो प्रकार से हुआ करता है - सद्भूत पदार्थका निषेध करके तथा अद्भूत पदार्थका निरूपण करके जैसे कि - " नास्ति आत्मा " - आत्मा कोई स्वतन्त्र पदार्थ नहीं है, अथवा "नास्ति परलोकः " - परलोक - -मरण करके जीवका भव धारण करना वास्तविक नहीं है, इत्यादि भूतनिव हैं । क्योंकि इससे सद्भूत पदार्थका अपलाप होता है । आत्मा और परलोक - जीवका भवान्तर धारण वास्तविक सिद्ध पदार्थ हैं- युक्तियुक्त और अनुभवगम्य हैं । इनका निषेध करना सद्भूतका अपलाप नामका मिथ्या वचन है । आत्माको श्यामाकतण्डुल - समाके चावलकी बरावर छोटे प्रमाणका बताना, अथवा अङ्गुष्ठके पर्वकी बराबर बताना, अथवा कहना, कि वह आदित्यवर्ण है, निष्क्रिय है, इत्यादि सब वचन अभूतोद्भावन नामके असत्य हैं। क्योंकि इस तरहके वचनों के द्वारा आत्माका जो वास्तविक स्वरूप नहीं है, उसका उल्लेख किया जाता है । अर्थान्तर शब्दका अर्थ है, भिन्न अर्थको सूचित करना । जो पदार्थ है, उसको दूसरा ही पदार्थ बताना ——— वास्तविक न कहना अर्थान्तर है । जैसे कि कोई गौको कहे कि यह घोड़ा है, अथवा घोड़ेको कहे कि यह गौ है । तो इस तरह के वचनको अर्थान्तर नामका असत्य कहते हैं । 1 नाम निन्दाका है । अतएव जितने भी निन्द्य वचन हैं, वे सब गर्हित नामके असल्य वचन समझने चाहिये | जैसे कि “ इसको मार डालो " " मर जा " " इसे कसाई को दे दो " इत्यादि हिंसा विधायक वचन बोलना, तथा मर्मभेदी अपशब्द बोलना, गाली देना, कठोर वचन कहना, आदि परुष - रूक्ष शब्दोंका उच्चारण करना, एवं पैशून्य - किसीकी चुगली करना आदि गर्हित वचन है । जो गति वचन हैं, वे कदाचित् सत्य भी हों, तो भी उनको असत्य ही मानना चाहिये । क्योंकि वे निन्द्य हैं । 1 भावार्थ — पहले हिंसाका लक्षण बताते हुए सूत्रमें “ प्रमत्तयोगात् ” शब्दका पाठ किया है । उसकी अनुवृत्ति असत्यादिका लक्षण बतानेवाले सूत्रों में भी जाती है । अतएव प्रमादयुक्त जीवके जो वचन हैं, वे सभी असत्य समझने चाहिये । प्रमादपूर्वक कहे गये सत्य वचम भी असर्त्य हैं और प्रमादको छोड़कर कहे गये असत्य वचनभी सत्य हैं । सत् शब्द के दो अर्थ हैं - विद्यमान और प्रशंसा । अतएव असत् शब्दसे अविद्यमानता और अप्रशस्तता दोनों ही अर्थ लेने चाहिये । सद्भूतनिह्नव अभूतोद्भावन और अर्थान्तर ये अविद्यमान अर्थको सूचित करनेवाले होनेसे असत्य हैं, और जो गर्हित वचन हैं, वे अप्रशस्त होनेसे असत्य हैं । तथा प्रमादका सम्बन्ध दोनों ही स्थानोंपर पाया जाता है । १ - जैसा कि ऊपर उदाहरण दिया गया है । २-जैसे किसी बीमार बालकको बतासेमें दवा रखकर देते हैं, और कहते हैं, कि यह बतासा है, इसमें दवा नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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