Book Title: Sabhasyatattvarthadhigamsutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Khubchand Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 392
________________ सूत्र १२। सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसत्रम् । दुःस्वरनाम । शुभभावशोभामाङ्गल्यनिवर्तकं शुभनाम । तद्विपरीतनिर्वर्तकमशुभनाम । सूक्ष्मशरिनिर्वर्तकं सूक्ष्मनाम।बादरशरीरनिर्वर्तकं बादरनाम। पर्याप्तिः पंचविधा। तद्यथा आहारपप्तिः, शरीरपर्याप्तिः, इन्द्रियपर्याप्तिः, प्राणापानपर्याप्तिः, भाषापर्याप्तिरिति । पर्याप्तिः क्रियापरिसमाप्तिरात्मनः। शरीरोन्द्रियवाङ्मनःप्राणापानयोग्यदलिकद्रव्याहरणक्रियापरिसमातिराहारपर्याप्तिः। गृहीतस्यशरीरतथा संस्थापनक्रियापरिसमाप्तिः शरीरपर्याप्तिः । संस्थापनं रचना घटनमित्यर्थः । त्वगादीन्द्रियनिर्वर्तनक्रियापरिसमाप्तिरिन्द्रियपर्याप्तिः । प्राणापानक्रियायोग्यद्रव्यग्रहणनिसर्गशक्तिनिवर्तनक्रियापरिसमाप्तिः प्राणापानपर्याप्तिः। भाषायोग्यद्रव्यग्रहणानि. सर्गशक्तिनिर्वर्तनक्रियापरिसमाप्तिर्भाषापर्याप्तिः। मनस्त्वयोग्यद्रव्यग्रहणनिसर्गशक्तिनिवर्तनक्रियापरिसमाप्तिर्मनःपर्याप्तिरित्येके । आसां युगपदारब्धानामपि क्रमेण समाप्तिरुत्तरोत्तरसूक्ष्मत्वात् सूत्रदादिकर्तनघटनवत् । यथासख्यं च निदर्शनानि गृहदलिकग्रहणस्तम्भस्थूणा द्वारप्रवेशनिगमस्थानशयनादिक्रियानिर्वर्तनानीति पर्याप्तिनिर्वतकंपर्याप्तिनाम। अपर्याप्तिनिवर्तकमपर्याप्तिनाम । अपर्याप्तिनाम तत्परिणामयोग्यदलिकद्रव्यमात्मनोपात्तिमत्यर्थः ॥ - स्थिरत्वनिर्वर्तकं स्थिरनाम । विपरीतभास्थिरनाम । आदेयभावनिर्वर्तकमादेयनाम । विपरीतमनादेयनाम । यशोनिवर्तकं यशोनाम । विपरीतमयशोनाम । तीर्थकरत्वनिवर्तकं तीर्थकरनाम । ताँस्तान्भावान्नामयतीति नाम । एवं सोत्तरभेदो नामकर्मभेदोऽनेकावधः प्रत्यतव्यः॥ ___अर्थ-प्रकृतिबंधका छटाभेद नामकर्म है । उसके मूलभेद ४२ हैं । जोकि इस प्रकार हैं-गतिनाम, जातिनाम, शरीरनाम, अङ्गोपाङ्गनाम, निर्माणनाम, बन्धननाम, संघातनाम, संस्थाननाम, संहनननाम, स्पर्शनाम, रसनाम, गन्धनाम, वर्णनाम, आनुपूर्वानाम, अगुरुलघुनाम, उपघातनाम, परघातनाम, आतपनाम, उद्योतनाम, उच्छासनाम, विहायोगतिनाम । यहाँतक २१ भेद हुए । यहाँसे आगे प्रत्येक शरीरादिकके भेद हैं जोकि सप्रतिपक्ष हैं । सूत्रमें जिनका नामोल्लेख किया गया है, वे भी नामकर्मके भेद हैं, और उनके विपरीत भी नामकर्मके भेद हुआ करते हैं। जैसे कि प्रत्येकशरीरनाम, साधारणशरीरनाम, सनाम, स्थावरनाम, सुभगनाम, दुर्भगनाम, सुस्वरनाम, दुःस्वरनाम, शुभनाम, अशुभनाम, सूक्ष्मनाम, बादरनाम, पर्याप्तनाम, अपर्याप्तनाम, स्थिरनाम, अस्थिरनाम, आदेयनाम, अनादेयनाम, यशोनाम, अयशोनाम । इस तरह २० भेद हैं । पूर्वोक्त २१ और २० ये इस प्रकार कुल मिलकर ४१ भेद हुए । एक भेद तीर्थनाम है, इसीको तीर्थकरनाम भी कहते हैं । अतएव सब मिलकर नामकर्मके मलभेद ४२ होते हैं। नामकर्मके उत्तरभेद अनेक हैं । जोकि इस प्रकार हैं-गतिनाम चार प्रकारका है, यथा नरक गतिनाम, तिर्यग्योनिगति नाम और देवगति नाम । जातिनाम कर्मके मूल उत्तरभेद पाँच हैं।-एकेन्द्रियजातिनाम, द्वीन्द्रियजातिनाम, त्रीन्द्रियजातिनाम, चतुरिन्द्रियजातिनाम, और पंचेन्द्रियजातिनाम । इनमेंसे एकेन्द्रियनातिनामके भी अनेक भेद हैं। यथा-पृथिवीकायिक जातिनाम, अप्कायिकजातिनाम, तेजःकायिकजातिनाम वायुकायिकजातिनाम, और वनस्पतिकायिकनातिनाम। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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