Book Title: Sabhasyatattvarthadhigamsutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Khubchand Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 452
________________ • सूत्र ३८-३९-४०-४१ । ] समाप्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । हैं। क्योंकि ये दोनों ही आदिके शुक्लध्यान - पृथक्त्ववितर्क और एकत्ववितर्क पूर्वविद्श्रुतवली ही हुआ करते हैं । भावार्थ — सूत्रमें जो च शब्दका ग्रहण किया है, उससे स्पष्ट होता है, कि उपशान्त कषाय और क्षीणकषाय गुणस्थान में धर्मध्यान भी होता है, और आदिके दो शुक्लध्यान भी होते हैं । यहाँपर पूर्वविदका अर्थ श्रुतकेवली लेना चाहिये । तथा श्रुतकेवली के आदिके दो शुक्लध्यान ही होते हैं, ऐसा अर्थ न करके दो शुक्लध्यान भी होते हैं, ऐसा करना चाहिये । अर्थात् शुक्लध्यानके स्वामी श्रुतकेवली ही होते है । अन्तके दो शुक्लध्यानोंके स्वामीको बताते हैंसूत्र - परे केवलिनः ॥ ४० ॥ भाष्यम्-परे द्वे शुक्लध्याने केवलिन एव भवतः न छद्मस्थस्य ॥ अर्थ - अन्त के दोनों शुक्लध्यान-सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति और व्युपरतक्रियानिवृत्ति केवली भगवान् - तेरहवें और चौदहवें गुणस्थानवाल के ही होते हैं, छद्मस्थके नहीं होते । अर्थात् सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति तेरहवें गुणस्थान में और व्युपरत क्रियानिवृत्ति नामका शुक्लध्यान चौदहवें गुणस्थान में ही होता है । ये दोनों ध्यान उसके नहीं हो सकते, जिसके कि प्रत्यक्ष केवलज्ञान प्रकटन हुआ हो । भाष्यम् – अत्राह - उक्तं भवता पूर्वे ध्याने परे शुक्ले ध्याने इति तत्कानि तानीति । अत्रोच्यते अर्थ - प्रश्न- आपने ऊपर के दोनों सूत्रोंमें क्रमसे " आद्ये " और " परे " शब्दों का पाठ किया है, जिनका अर्थ होता है, कि आदिके दो शुक्लध्यान और अन्तके दो शुक्लध्यान, ऐसा कहने से मालूम होता है, कि शुक्लध्यानके चार भेद हैं, किन्तु वे भेद कौनसे हैं, सो अभीतक मालूम नहीं हुए । अतएव कहिये कि उनके क्या क्या नाम ? इसका उत्तर देनेके लिये ही आगेका सूत्र कहते हैं: सूत्र- पृथक्त्वैकत्ववितर्क सूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिव्युपरत क्रियानिवृत्तीनि४१ ४२७ भाष्यम् – पृथक्त्ववितर्के एकत्ववितर्क काययोगानां सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति व्युपरतक्रिया निवृत्तीति चतुर्विधं शुक्लध्यानम् ॥ अर्थ — पृथक्त्ववितर्क एकत्ववितर्क सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति और व्युपरतक्रियानिवृत्ति इस तरह शुक्लध्यानके चार भेद हैं । इनमेंसे तीसरा शुक्लध्यान काय योगवाले जीवों के ही होता है । १ – इसका पूरा नाम पृथक्त्ववितर्कवीचार है, जैसा कि आगे चलकर मालूम होगा । २ - इस बातको आगे चलकर सूत्रकार भी बतायेंगे । यहाँ भाष्यकारने चारोंके स्वामियोंको न बताकर एकके स्वामीको ही बताया है, आगे चलकर सूत्रकार चारोंके स्वामियों को बतावेंगे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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