Book Title: Sabhasyatattvarthadhigamsutra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Khubchand Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 465
________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [ दशमोऽध्यायः अवस्था सिद्ध होती है, इस तरह समस्त कर्मोंके क्षयसे मोक्ष-तत्त्वकी सिद्धि होती है । तथा इसके सिवाय और किस किसके अभावसे सिद्धि होती है, इस बातको बतानेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं सूत्र--औपशमिकादिभव्यत्वाभावाचान्यत्र केवलसम्यक्त्वज्ञानदर्शनसिद्धत्वेभ्यः ॥ ४ ॥ भाष्यम्-औपशमिकक्षायिकक्षायोपशमिकौदयिकपारिणामिकानां भावानां भव्यत्वस्य चाभावान्मोक्षो भवति अन्यत्र केवलसम्यक्त्वकेवलज्ञानकेवलदर्शनसिद्धत्वेभ्यः । एते ह्यस्य क्षायिका नित्यास्तु मुक्तस्यापि भवन्ति ॥ अर्थ-ऊपर सम्पूर्ण कर्मोंके अभावसे मोक्षकी सिद्धि बताई है, इसके सिवाय औपशमिक क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक और पारणामिकभावोंके अभावसे तथा भव्यत्वके भी अमावसे मोक्षकी प्राप्ति होती है, ऐसा समझना चाहिये । औपशमिकादि भावोंमें केवल सम्यक्त्व केवलज्ञान केवलदर्शन और सिद्धत्वभाव भी आ जाता है, अतएव इनके अभावसे भी मोक्ष होती होगी, ऐसा कोई न समझ ले, इसके लिये कहा गया है, कि इन चार भावोंके सिवाय औपशमिकादि भावोंका अभाव होनेपर मोक्ष-अवस्था सिद्ध होती है। क्योंकि इन केवलीभगवान्के ये क्षायिकभाव नित्य हैं, और इसी लिये ये मुक्त-जीवके भी पाये जाते-या रहा करते हैं। भावार्थ-ऊपर जो जीवके औपशमिकादि स्वतत्त्व बताये हैं। उनमें से पारणामिक भावोंको छोड़कर शेष भाव कर्मोंकी अपेक्षासे हुआ करते हैं । मुक्त-अवस्था सर्वथा कर्मोंसे रहित है। अतएव कर्मोंके उपशम क्षयोपशम उदयसे उत्पन्न होनेवाले भाव वहाँपर नहीं रह सकते हैं, क्षायिकभावों से चार उपर कहे हुए भावोंको छोड़कर बाकी भाव भी वहाँ नहीं रहा करते । क्योंकि उनके लिये वहाँ योग्य निमित्त नहीं है । पारणामिकभावों से भव्यत्वभावका भी अभाव हो जाता है । क्योंकि उसका कार्य अथवा फल पूर्ण हो चुका ।। ___ इस प्रकर सकल कर्म और औपशमिकादिभावोंके अभावसे मोक्ष हो जानेपर उस जीवकी क्या गति होती है, या वह किस प्रकार परिणत होता है, इस बातको बतानेके लिये सूत्र कहते हैं सूत्र--तदनन्तरमूर्ध्वं गच्छत्यालोकान्तात् ॥५॥ __भाष्यम् तदनन्तरमिति कृत्स्नकर्मक्षयानन्तरमौपशमिकाधभावानन्तरं चेत्यर्थः । मुक्त ऊर्ध्वं गच्छत्यालोकान्तात् । कर्मक्षये देहवियोगसिध्यमानगतिलोकान्तप्राप्तयोऽस्य युगपदेकसमयेन भवन्ति । तद्यथा-प्रयोगपरिणामादिसमुत्थस्य गतिकर्मण उत्पत्तिकार्यारम्भविमाशा युगपदेकसमयेन भवन्ति तद्वत् ॥ ___ अर्थ-उसके अनन्तर जीव ऊर्ध्व-गमन करता है । कहाँ तक ? तो लोकके अन्ततक । यही सूत्रका सामान्यार्थ है । इसमें तदनन्तर शब्द जो आया है, उससे उपर्युक्त दोनों प्रकारके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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