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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
[ पञ्चमोऽध्यायः
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संस्थान नाम आकृतिका है । यह दो प्रकारकी है - आत्मपरिग्रह और अनात्मपरिग्रह । आत्मपरिग्रह संस्थान अनेक प्रकारका है । यथा - पृथिवीकायिक जीवों के शरीरका आकार मसूर अन्नके समान हुआ करता है' । जलकायिक जीवोंके शरीरका आकार जलबिन्दुके समान होता है | अग्निकायिक जीवोंके शरीरका आकार सूचीकलापके समान हुआ करता है । वायुकायिक जीवोंके शरीरका आकार पताका के समान होता है । और वनस्पतिकायिक जीवोंके शरीरका आकार कोई निश्चित नहीं होता । अतएव उसको अनित्थंभूत कहते हैं । द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के शरीरका आकार हुंडक होती है । पञ्चेन्द्रिय जीवोंके शरीरका आकार संस्थाननामकर्मके उदयके अनुसार छह प्रकारका हुआ करता है । - समचतुरस्र, न्यग्रोधपरिमण्डल, स्वाति, कुब्जक, वामन और हुण्डक ।
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अनात्मपरिग्रह आकार भी अनेक प्रकारका है -- गोल त्रिकोण चतुष्कोण आदि । सामान्यतया पुद्गुलके आकार दीर्घ ह्रस्वसे लेकर अनित्थन्त्व पर्यन्त बहु भेदरूप हैं । तथा उनके उत्तरभेद भी अनेक हैं । उनका यथासम्भव अन्तर्भाव मूल भेदों में कर लेना चाहिये ।
भेद शब्दका अर्थ विश्लेष है । परस्पर में संयुक्त हुए अनेक पदार्थोंके पृथक् पृथक् हो जाने को भेद कहते हैं । यह पाँच प्रकारका होता है - - औत्कारिक - चौर्णिक - खण्ड-प्रतरअणुचटन। लकड़ी वगैरहके चीरनेसे या किसीके आघातसे जो भेद होता है, उसको औत्कारिक कहते हैं। गेहूं वगैरहको दलने या पीसनेसे जो भेद होता है, उसको चौर्णिक कहते हैं । मट्टी वगैरहको फोड़कर जो भेद किया जाता है, उसको खण्ड कहते हैं । मेघपटल की तरह बिखरकर भेद हो जानेको प्रतर कहते हैं, और ईख वगैरह या फल वगैरह के ऊपरसे छिल का उतार कर भेद करनेको अणुचटन कहते हैं ।
प्रकाशके विरोधी और दृष्टिका प्रतिबन्ध करनेवाले पुद्गल परिणामको तम - अन्धकार कहते हैं। किसी भी वस्तुमें अन्य वस्तुकी आकृतिके अंकित हो जानेको छाया कहते हैं । यह दो प्रकार की हुआ करती है - प्रकाशके आवरणरूप और प्रतिबिम्बरूप । जिसकी प्रभा उष्ण हो, ऐसे प्रकाशको आतप कहते हैं । जिसकी प्रभा ठंडी - आल्हादक हो, उसको उद्योत कहते है ।
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१ -- मसूराम्बुपृषत् सूची कलापध्वजसंनिभाः । वराप्तेजो मरुत्कायाः नानाकारास्तरुत्रसाः ॥ ५७ ॥ - तत्त्वार्थसार २ --- जिस शरीरके आङ्गोपाङ्ग किसी नियत आकार और नियत परिमाण में न हों । ३-छह संस्थानोंका लक्षण इस प्रकार है- " तुल्लं वित्थडबहुलं, उस्सेह बहुं च मडहको हुं च । हिल्लिकाय मउहं, सम्बत्थासंठियं हुंडे ॥ जिसके आङ्गोपाङ्ग सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार यथाप्रमाण हों, उसको समचतुरस्र कहते हैं । जो ऊपरसे भारी नीचे हलका हो उसको न्यग्रोधपरिमण्डल कहते हैं । जो ऊपर हल्का नीचे भारी हो, उसको स्वाति कहते हैं । जिसकी पीठपर कुछ भाग निकला हो, उसको कुब्जक कहते हैं । लघु शरीरको वामन कहते हैं । जिसका आकार अनियत हो, उसको हुंडक कहते हैं । ४ - मूलम्हपहा आगी आदावो होदि उन्हसहियपहा । आइच्चे तेरिच्चे उष्णूणपहाभ उनोओ ॥
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