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सूत्र १५-१६-१७-१८-१९-२०] सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
३१३ सूत्र--अल्पारम्भपरिग्रहत्वं स्वभावमार्दवार्जवं च मानुषस्य॥१८॥ भाष्यम्-अल्पारम्भपरिग्रहत्वं स्वभावमार्दवार्जवं च मानुषस्यायुष आस्रवो भवति ।
अर्थ-अल्प आरम्भ करना और अल्प ही परिग्रह रखना तथा स्वभावकी मृदुताकोमलता और आर्जव--सरलता ये सब मनुष्य आयुके बंधके कारण हैं:
भावार्थ---यहाँपर अल्प शब्दसे प्रयोजनीभूतको लिया है, जितनेसे अपना प्रयोजन सिद्ध हो जाय, उतना आरम्भ करना और उतना ही परिग्रह रखना । मनुष्य आयुके आस्रवका कारण है । इसी प्रकार मार्दव और आर्जव भी उसके कारण हैं । मानके अभावको मार्दव और मायाचारके न करनेको आर्जव कहते हैं।
सामान्यसे सभी आयुओंके आस्रवके कारणोंको बताते हैं:--
सूत्र--निःशीलवतलं च सर्वेषाम् ॥ १९ ॥ . भाष्यम्--निःशीलवतत्वं च सर्वेषां नारकतैर्यग्योनमानुषाणामास्रवो भवति । यथोक्तानि च ॥ ___अर्थ-नारक आयु तैर्यग्योन आयु और मनुष्य आयुके आस्रवके कारण ऊपर बताचुके हैं, उन कारणोंसे उन उन आयुकर्मोंका आस्रव होता है। परन्तु उनके सिवाय एक सामान्य कारण शीलरहित व्रतोंका पालन करना है । इससे सभी आयुओंका आस्रव होता है ।
भावार्थ-सर्व शब्दसे चारों आयुओंका ग्रहण होना चाहिये, परन्तु प्रकृतमें ऊपर कही हुई तीन ही आयुओंकी अपेक्षा ली गई है। किन्तु यह अर्थ इस तरह सूत्रके न करनेपर भी सिद्ध हो सकता था । अतएव इससे एक विशेष ज्ञापनसिद्ध अर्थ भी प्रकट होता है । वह यह कि भोगभूमिजोंकी अपेक्षा निःशील व्रतोंका पालन करना देवायुके आस्रवका भी कारण है।
भाष्यम्-अथ देवस्यायुषः क आस्रव इति ? अत्रोच्यते
अर्थ-प्रश्न-आयुकर्मके चार भेद हैं। उनमें से तीनके आस्त्रवके कारण आपने ऊपर बताये । परन्तु देवायके आस्त्रको अभीतक नहीं बताया । अतएव कहिये कि उसका आस्रव क्या है ? इसका उत्तर देनेके लिये सूत्र कहते हैं-- सूत्र--सरागसंयमसंयमासंयमाकामनिर्जराबालतपांसि दैवस्य॥२०॥
भाष्यम्-संयमो विरतिव्रतमित्यनान्तरम् । हिंसानृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिव्रतमिति वक्ष्यते । संयमासंयमो देशविरतिरणुव्रतमित्यनन्तरम् । देशसर्वतोऽणुमहती। इत्यपि वक्ष्यते । अकामनिर्जरा पराधीनतयानुरोधाच्चाकुशल निवृत्तिराहारादिनिरोधश्च । बालतपः।-बालो मूढ इत्यनान्तरम्, तस्य तपो बालतपः । तच्चाग्निप्रवेशमरुत्प्रपातजल. प्रवेशादि । तदेवं सरागसंयमः संयमासंयमादीनि च देवस्यायुष आस्वा भवन्तीति ॥
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