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रायचन्द्रनैनशास्त्रमालायाम् [ चतुर्थोऽध्यायः . सूत्र-भवनवासिनोऽसुरनागविद्युत्सुपर्णामिवातस्तनितो
दधिदीपदिक्कुमाराः ॥ ११ ॥ भाष्यम्-प्रथमो देवनिकायो भवनवासिनः । इमानि चैषां विधानानि भवन्ति । तद्यथा-असुरकुमारा नागकुमारा विद्युत्कुमाराः सुपर्णकुमारा अग्निकुमारा वातकुमाराः स्तनितकुमारा उदधिकुमारा द्वीपकुमारा दिक्कुमारा इति ॥
कुमारवदेते कान्तदर्शनाः सुकुमाराः मृदुमधुरललितगतयः श्रृङ्गाराभिजातरूपविक्रियाः कुमारवच्चोद्धतरूपवेषभाषाभरणप्रहरणावरणयानवाहनाः कुमारवञ्चोल्बणरागाः क्रीडनपराश्चेत्यतः कुमारा इत्युच्यन्ते । असुरकुमारावासेष्वसुरकुमाराः प्रतिवसन्ति शेषास्तु भवनेषु । महामन्दरस्य दक्षिणोत्तरयोदिग्विभागयोर्बह्वीषु योजनशतसहस्रकोटीकोटीष्वावासा भवनानि च दक्षिणार्धाधिपतीनामुत्तरार्धाधिपतीनां च यथास्वं भवन्ति । तत्र भवनानि रत्नप्रभायां बाहल्यार्धमवगाह्य मध्ये भवन्ति । भवनेषु वसन्तीति भवनवासिनः ॥ ___ अर्थ—पहला देवनिकाय भवनवासी हैं। उनके ये भेद हैं-असुरकुमार १ नागकुमार २ विद्युत्कुमार ३ सुपर्णकुमार ४ अग्निकुमार ५ वातकुमार ६ स्तनितकुमार ७ उदधिकुमार ८ द्वीपकुमार ९ और दिक्कुमार १० ।
असुरादिक सभी भवनवासीदेवोंका स्वरूप कुमारोंके समान रमणीय और दर्शनीय हुआ करता है । इनके शरीर कुमारोंके समान ही सुकुमार और इनकी गति मृदु-स्निग्ध मधुर और ललित हुआ करती है । सुंदर श्रृंगारमें रत उच्च एवं उत्तम रूपको धारण करने. वाले तथा विविध प्रकारकी क्रीड़ा विक्रिया करनेमें अनुरक्त रहा करते हैं। इनका रूप शरीरका वर्ण, वेष-वस्त्रपरिधान, भाषा-वचन-कला, आभरण-अलंकार, प्रहरण-अस्त्र शस्त्र आदि आयुध, आवरण-छत्रादिक आच्छादन, यान-पालकी पीनस आदि, और बाहन-हाथी घोडा आदि सवारी, सब उद्धत और ऐसी हुआ करती हैं, जो कि कुमारोंके तुल्य हों, इनका राग भाव भी कुमारोंके ही समान उल्वण-व्यक्त हुआ करता है। एवं कमारोंके ही समान ये भी क्रीडा करने–यथेच्छ इतस्ततः विहार करने और विनोद करते फिरनेमें रत एवं प्रसन्न रहा करते हैं । इत्यादि सभी चेष्टा और मनोभाव कुमारोंके तुल्य रहनेके कारण असुरादिक दशों भेदवाले भवनवासियोंके लिये कुमार शब्दका प्रयोग किया जाता है । असुरकुमार नागकुमार इत्यादि ।
दश प्रकारके भवनवासियोंमें जो असुरकुमार हैं, वे प्रायः करके अपने आवासोंमें ही रहा करते हैं । यद्यपि कभी कभी वे भवनोंमें भी रहते हैं, परन्त प्रायःकरके उनका निवास अपने अपने आवास स्थानमें ही हुआ करता है। बाकीके ९ प्रकारके भवनवासी आवासोंमें नहीं रहते भवनोंमें ही रहा करते हैं।
१-नाना प्रकारके रत्नोंकी प्रभासे उद्दीप्त रहनेवाले शरीर प्रमाणके अनुसार बने हुए महामण्डपोंको आवास कहते हैं। बाहरसे गोल भीतरसे चतुष्कोण और नीचेके भागमें कमलकी कर्णिकाके आकार में जो बने हुए होते हैं, उन मकानोंको भवन कहते हैं ।
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