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सूत्र ४३-४४-४१-४९ ।] सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
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स्थितिके प्रकरणको पाकर भवनवासी व्यन्तर ज्योतिष्कों की स्थितिका भी वर्णन करना चाहते हैं । किंतु भवनवासियोंकी उत्कृष्ट स्थिति पहले बता चुके हैं, जघन्य स्थिति अभीतक नहीं बताई है, अतएव उसीका प्रमाण बतानेके लिये सूत्र करते हैं
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सूत्र - भवनेषु च ॥ ४५ ॥
भाष्यम् - भवनवासिनां च दश वर्षसहस्राणि जघन्या स्थितिरिति ॥
अर्थ - भवनवासी देवोंकी भी जघन्य स्थितिका प्रमाण दश हजार ( १०००० )
वर्षा है |
क्रमानुसार व्यन्तर देवोंकी भी जघन्य स्थितिका प्रमाण बताते हैं
सूत्र - व्यन्तराणां च ॥ ४६ ॥
भाष्यम् - व्यन्तराणां च देवानां दश वर्षसहस्राणि जघन्या स्थितिरिति । अर्थ - व्यन्तर देवोंकी भी जघन्य स्थितिका प्रमाण दश हजार वर्षका ही है । व्यन्तरोंकी उत्कृष्ट स्थिति अभीतक नहीं बताई है, अतएव उसको भी यहाँपर बताते हैंसूत्र - परा पल्योपमम् ॥ ४७ ॥
भाष्यम् -- व्यन्तराणां परा स्थितिः पल्योपमं भवति ॥
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अर्थ - व्यन्तर देवोंकी उत्कृष्ट स्थितिका प्रमाण एक पल्योपम है। क्रमानुसार ज्योतिष्क देवोंकी उत्कृष्ट स्थिति बताते हैं
सूत्र - ज्योतिष्काणामधिकम् ॥ ४८ ॥
भाष्यम् - ज्योतिष्काणां देवानामधिकं पल्योपमं परा स्थितिर्भवति ।
अर्थ -- ज्योतिष्क निकाय के देवोंकी उत्कृष्ट स्थितिका प्रमाण एक पल्यसे कुछ अधिक है । अधिकका प्रमाण इस प्रकार है - चन्द्रमाका एक लाख वर्ष अधिक, और सूर्यका एक हजार वर्षं अधिक । ज्योतिष्क देवियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका प्रमाण आधा पल्य और पचास हजार वर्ष है ।
इस सूत्र बताये हुए ज्योतिष्कोंके सिवाय ग्रहादिकों की उत्कृष्ट स्थितिका प्रमाण • बताते हैं-
सूत्र - ग्रहाणामेकम् ॥ ४९ ॥
भाष्यम् — ग्रहाणामेकम् पल्योपमं स्थितिर्भवति ।
अर्थ — ग्रहों की उत्कृष्ट स्थितिका प्रमाण एक पल्योपम है ।
१ - पत्योपमं परा स्थितिरिति पाठान्तरम् ।
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