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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
[ द्वितीयोऽध्यायः
उपयोग यह जीवका सामान्य लक्षण है-वह जीवमात्रमें पाया जाता है । और वह दो भेद रूप है, यह बात तो बताई, परन्तु इस लक्षणसे युक्त जीव द्रव्यके कितने भेद हैं, सो अभीतक नहीं बताये, अतएव उनको बतानेके लिये सूत्र कहते हैं
सूत्र-संसारिणो मुक्ताश्च ॥ १० ॥ भाष्यम्-ते जीवाः समासतो द्विविधा भवन्ति-संसारिणो मुक्ताश्च । किं चान्यत्
अर्थ-जिनका कि उपयोग यह लक्षण ऊपर बताया जा चुका है, वे जीव संक्षेपमें दो प्रकारके हैं-एक संसारी और दूसरे मुक्त।।
भावार्थ-संसरण नाम परिभ्रमणका है, वह जिनके पाया जाय-जो चतुर्गतिरूप संसारमें भ्रमण करनेवाले हैं, अथवा इस भ्रमणके कारणभूत कर्मोंका जिनके सम्बन्ध पाया जाय, उनको संसारी कहते हैं । और जो उससे रहित हैं, उनको मुक्त कहते हैं ।
यद्यपि जीवोंके इन दो भेदोंमें मुक्त जीव अभ्यर्हित हैं, इसलिये सूत्रमें पहले उनका ही उल्लेख करना चाहिये था । परन्तु अभिप्राय विशेष दिखानेके लिये सूत्रकारने पहले संसारी शब्दका ही पाठ किया है। वह अभिप्राय यह है, कि इससे इस बातका भी बोध हो जाय, कि संसारपूर्वक ही मोक्ष हुआ करती है । इसके सिवाय एक बात यह भी है, कि संसारी जीवोंका आगेके ही सूत्रोंमें वर्णन करना है, अतएव उसका पहले ही पाठ करना उचित है। संसारी जीवोंके उत्तरभेद बतानेके लिये सूत्र करते हैं।
सूत्र-समनस्कामनस्काः ॥ ११ ॥ भाष्यम्-समासतस्ते एव जीवा द्विविधा भवन्ति-समनस्काश्च अमनस्काश्च । तान पुरस्तात् वक्ष्यामः॥
अर्थ-उपर्युक्त संसारी जीवोंके संक्षेपसे दो भेद हैं-एक समनस्क दूसरे अमनस्क । . इन दोनोंका ही स्वरूप आगे चलकर लिखेंगे ।
भावार्थ-जो मन सहित हों उनको समनस्क कहते हैं, और जो मन रहित हों, उनको अमनस्क कहते हैं । नारक देव और गर्भन मनुष्य तियेच ये सब समनस्क हैं, और इनके सिवाय जितने संसारी जीव हैं, वे सब अमनस्क हैं। जो शिक्षा क्रिया आलाप आदिको ग्रहण कर सकें, समझना चाहिये, कि ये मन सहित हैं । मन दो प्रकारका है-एक द्रव्यमन दूसरा भावमन । मनोवर्गणाओंके द्वारा अष्टदल कमलके आकारमें बने हुए अन्तःकरणको द्रव्यमन कहते हैं और जीवके उपयोगरूप परिणामको भाव. मन कहते हैं।
१-अध्याय २ सूत्र २५
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