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रायचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम
[ चतुर्थोऽध्यायः
असुरकुमारोंके चमर और बलि ये दो इन्द्र हैं। नागकुमारोंके धरण और भूतानंद, विद्युत्कुमारों के हरि और हरिहस, सुपर्ण कुमारोंके वेणुदेव और वेणुदारी, अग्निकुमारोंके अग्निशिख और अग्निमाणव, वातकुमारोंके वेलम्ब और प्रभञ्जन, स्तनितकुमारोंके सुघोष और महाघोष, उदधिकुमारों के जलकान्त और जलप्रभ, द्वीपकुमारों के पूर्ण और अवशिष्ट, तथा दिक्कुमारों के अमित और अमितवाहन ये दो इन्द्र हैं ।
व्यन्तरनिकाय के आठ भेद हैं - उनमें भी इसी प्रकार प्रत्येक भेदके दो दो इन्द्र समझने चाहिये । उनके नाम इस प्रकार हैं- किन्नरों के किन्नर और किम्पुरुष, किम्पुरुषोंके सत्पुरुष और महापुरुष, महोरगोंके अतिकाय और महाकाय, गन्धर्वोके गीतरति और गीतयशाः, यक्षोंके पूर्णभद्र और मणिभद्र, राक्षसोंके भीम और महाभीम, भूतोंके प्रतिरूप और अतिरूप, एवं पिशाचोंके काल और महाकाल ये दो इन्द्र हैं ।
ज्योतिष्क निकायमें सूर्य और चन्द्रमा ये दो' इन्द्र हैं । किन्तु ये सूर्य और चन्द्रमा एक एक ही नहीं किन्तु बहुत हैं। क्योंकि द्वीप समुद्रों का प्रमाण असंख्य है और प्रत्येक द्वीप या समुद्रमें अनेक सूर्य तथा चन्द्रमा पाये जाते हैं । अतएव सूर्य और चन्द्रमा भी असंख्य हैं । वैमानिकदेवोंमें एक एक ही इन्द्र हैं । - यथा - - सौधर्म स्वर्गके इन्द्रका नाम शक्र है, इसी प्रकार ऐशान स्वर्गके इन्द्रका नाम ईशान और सानत्कुमार स्वर्गके इन्द्रका नाम सनत्कुमार है । इसी प्रकार हरएक कल्पमें समझना चाहिये। उन इन्द्रोंके नाम कल्पों के नामके अनुसार ही हैं । बारहवें अच्युत स्वर्ग तक कल्प कहा जाता है । इसलिये वहीं तक यह इन्द्रादिक की कल्पना पाई जाती है, उसके आगे देवोंके सामानिक आदि विशेष भेद नहीं है । वहाँ सभी देव स्वतन्त्र हैं । उनको अहमिन्द्र कहते हैं । वे गमनागमनसे रहित हैं ।
इस प्रकार पहली दोनों निकायोंके इन्द्रोंका वर्णन करके उनकी लेश्याओंको बतानेके लिये सूत्र कहते हैं:
सूत्र - पीतान्तलेश्याः ॥ ७ ॥
भाष्यम् - पूर्वयोर्निकाययोर्देवानां पीतान्ताश्चतस्रोलेश्या भवन्ति । अर्थ — पहले दोनों निकायोंके देवों के पीतपर्यन्त चार लेश्याएं होती हैं ।
१ – दिगम्बर सम्प्रदायमें इन दोनोंमें से चन्द्रमाको प्रधान माना है । चन्द्रको इन्द्र और सूर्यको प्रतीन्द्र कहते हैं । सौ इन्द्रोंकी गणना में इन्द्र और प्रतीन्द्र दोनों ही लिये जाते हैं । २ - जम्बूद्वीप दोय लवणाम्बुधिमें चार चन्द, धातखण्ड बारह कालोदधि व्यालीस हैं, पुस्करके दोय भाग ईधर बहत्तरह इत्यादि ( चर्चाशतक ) ३ - माहेन्द्रमें माहेन्द्र, ब्रह्मलोकमें ब्रह्म, लान्तवमें लान्तक, महाशुक्रमें महाशुक्र, सहस्रार में सहस्रार, आनत और प्राणत दोनों कल्पोंका प्राणत नामका एक ही इन्द्र है। इसी प्रकार आरण और अच्युतकल्पों का एक अच्युत नामका ही इन्द्र है । इस प्रकार बारह स्वर्गोंके दश ही इन्द्र हैं । किन्तु दिगम्बर सम्प्रदायमें सोलह स्वर्ग और उनके बारह इन्द्र माने हैं ।
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