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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
द्वितीयोऽध्यायः
__अर्थ-आपने नौ जीवनिकाय बताये हैं-पृथिवी जल वनस्पति अग्नि और वायु ये पाँच और द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय ये चार, इस तरह कुल जीवनिकाय ९ हैं और " पंचेन्द्रियाणि" इस सूत्रके द्वारा इन्द्रियाँ पाँच ही बताई हैं । अतएव कहिये कि किस किस जीवनिकायके कौन कौनसी इन्द्रियाँ होती हैं ? इसका उत्तर देनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
सूत्र--बावन्तानामेकम् ॥ २३ ॥
भाष्यम्-पृथिव्यादीनां वायवन्तानां जीवनिकायानामेकमेन्द्रियम् । सूत्रक्रमप्रामाण्यात प्रथमं स्पर्शनमेवेत्यर्थः ॥
अर्थ-पृथिवीसे लेकर वायुपर्यन्त पाँच जीवनिकायोंके एक ही इन्द्रिय है, और वह सूत्रक्रमकी प्रमाणताके अनुसार पहली स्पर्शन इन्द्रिय ही है। क्योंकि यहाँपर एक शब्दसे अभिप्राय प्रथमका है।
भावार्थ--यद्यपि द्वीन्द्रियादिक शब्दोंका उच्चारण करनेसे ही यह अर्थ अपत्ति प्रमाणके अनुसार समझमें आ जाता है, कि जो इनसे पहले वायु पर्यन्त जीवनिकाय हैं, उनके एक ही इन्द्रिय होना चाहिये । परन्तु ऐसा होनेपर भी यह समझमें नहीं आ सकता, कि द्वीन्द्रियके कौनसी दो इन्द्रियाँ हैं, और त्रीन्द्रियके कौनसी तीन इन्द्रियाँ हैं । इत्यादि । इसी तरह वायुपर्यन्तके भी कौनसी एक इन्द्रिय समझना सो भी समझमें नहीं आ सकता । इसलिये इस सूत्रके कहने की आवश्यकता है।
दो आदिक इन्द्रियाँ किन किनके होती हैं सो बताते हैं
सूत्र-कृमिपिपीलिकाभ्रमरमनुष्यादीनामेकैकवृद्धानि॥२४॥ भाष्यम्-कृम्यादीनां पिपीलिकादीनां भ्रमरादीनां मनुष्यादीनां च यथासंख्यमेकैकवृद्धानीन्द्रियाणि भवन्ति । यथाक्रम, तद्यथा-कृम्यादीनां अपादिकनूपुरक गण्डूपद शङ्ख शुक्तिका शम्बूका जलोका प्रभृतीनामेकेन्द्रियेभ्यः पृथिव्यादिभ्यः एकेन वृद्ध स्पर्शनरसनेन्द्रिये भवतः । ततोऽप्येकेनवृद्धानि पिपीलिका रोहिणिका उपचिका कुन्थु तम्बुरुकत्रपुसबीज कासास्थिका शतपद्युत्पतक तृणपत्र काष्ठहारकप्रभृतीनां त्रीणि स्पर्शनरसनघ्राणानि । ततोऽप्येकेनवृद्धानि भ्रमर वटर सारङ्गमक्षिकापुत्तिका दंश मशकवृश्चिकनन्यावर्तकीट पतङ्गादीनां चत्वारिस्पशनरसनघाणचक्षूषि । शेषाणां च तिर्यग्योनिजानां मत्स्योरगभुजंगपक्षि चतुष्पदानां सर्वेषां च नारकमनुष्यदेवानां पञ्चेन्द्रियाणीति ॥
अर्थ-इस सूत्रमें आदि शब्दका सम्बन्ध कृमिआदिक प्रत्येक शब्दके साथ करना चाहिये-कृमि आदिक, पिपीलिका आदिक, इत्यादि । इन जीवोंके क्रमसे एक एक इन्द्रिय अधिक अधिक होती गई है । अर्थात् वायु पर्यन्त पाँच जीवनिकायोंके एक स्पर्शन इन्द्रिय बताई है, उनकी अपेक्षा कृमि आदिक-कोड़ी लट नूपुरक केंचुआ शंख सीप घोंघा जोंक इत्यादि
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